
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने में संघवाद कमजोर न पड़े
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- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को लागू करने को लेकर मंत्रालय और दक्षिणी राज्यों (मुख्यतः तमिलनाडु) के बीच बहस छिड़ी हुई है। ऐसा होने से समग्र शिक्षा योजना (2018-19) के उद्देश्य में बाधा आ रही है। समग्र शिक्षा का उद्देश्य सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान तथा कौशल कार्यक्रमों को समेकित करना रहा है। कुल मिलाकर, इस योजना को सभी स्कूली बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
- केंद्र ने तमिलनाडु के समग्र शिक्षा निधि के आवंटन को रोक दिया है। इससे 40 लाख छात्र और 32,000 कर्मचारी प्रभावित हो रहे हैं।
- राज्य के मुख्यमंत्री ने सही सवाल उठाया है कि कौन सा संवैधानिक प्रावधान तीन-भाषा नीति को अनिवार्य बनाता है। तमिलनाडु 1968 से चल रही तमिल और अंग्रेजी की दो भाषा नीति को जारी रखना चाहता है।
- केंद्र का मत है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 किसी राज्य पर हिंदी को नहीं थोपती है।
- संविधान की समवर्ती सूची में विषयों को नियंत्रित करने वाली नीतियों के लिए लचीलेपन और संवाद की आवश्यता होती है। शिक्षा जैसे समवर्ती विषय को केंद्र कठोरता से लागू नहीं कर सकता है। इससे सहकारी संघवाद कमजोर होता है। राज्यों के बीच असंतोष बढ़ने का खतरा हो जाता है।
- एक व्यावहारिक दृष्टिकोण यह हो सकता है कि समग्र शिक्षा और प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएमश्री) योजना को राष्ट्रीय शिक्षा नीति से अलग कर दिया जाए। सामान्य प्रदर्शन संकेतकों को फंडिंग से जोड़ा जाए।
- तमिलनाडु के लिए अच्छा होगा कि वह अपनी लंबी समय से लंबित राज्य शिक्षा नीति को अंतिम रूप दे, और उसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में लागू करे, ताकि उसके छात्रों के लिए शैक्षणिक निरंतरता और स्थिरता सुनिश्चित हो सके।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 फरवरी, 2025