‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’
Date:21-09-20 To Download Click Here.
प्रधानमंत्री ने ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ और ‘प्रोजेक्ट एलीफेंट’ की तर्ज पर ‘प्रोजेक्ट डॉलफिन’ की घोषणा की है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य नदियों और समुद्रों, दोनों की ही डॉल्फिन को संरक्षित करना है। 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस प्रोजेक्ट से जैव विविधता को मजबूती मिलने के साथ ही रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। वनों में बाघों की तरह ही नदियों में डाल्फिन का महत्व है।
डॉल्फिन की विशेषता
गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन (प्लेटेनिस्टा गैंजेटिका) ‘सोंस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह विश्व में पाई जाने वाली पाँच प्रकार की डॉल्फिन में से एक है। यह मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगू नदियों में पाई जाती है।
यह कोई मछली नहीं , बल्कि स्तनधारी जीव है। ये आवाज को लेकर बेहद संवेदनशील होती हैं।
‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन की जरूरत क्यों ?’
एक समय था, जब गंगा एवं उसकी सहायक नदियों में लाखों की संख्या में डॉल्फिन थीं। लेकिन इनका बेतहाशा शिकार होने , नदी में बांधों व बैराज का निर्माण होने व प्रदूषण से इनका अस्तित्व संकट में पड़ गया। इस समय दो हजार से भी कम डॉल्फिन शेष हैं।
नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ का सूचक , उसका जलीय जीवन होता है। नदियों की खाद्य श्रृंखला के शीर्ष पर गंगा की डॉल्फिन आती है। इस प्रजाति और उसके आवास को बचाने का सीधा संबंध जलीय जीवों को संरक्षित करने से है।
डॉल्फिन के संरक्षण की दिशा में प्रयास
संकटग्रस्त प्रजाति होने के कारण इसे वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की सूची-1 में शामिल किया गया है।
- अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आइ यू सी एन) ने 1996 में ही इसे गंभीर विलुप्त प्रायः प्रजाति की श्रेणी में शामिल कर लिया था। यानि राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके संरक्षण को लेकर कार्य होते रहे हैं।
- बिहार सरकार ने 1991 में लगभग 50 कि.मी. क्षेत्र को ‘गैंजेटिक रिवर डॉल्फिन संरक्षित क्षेत्र’ घोषित किया था।
- अधिनियम के अंतर्गत ही बिहार में ‘विक्रमशिला गैंजेज डॉल्फिन सेंचुरी’ का निर्माण किया गया है।
संरक्षण योजना –
सरकार ने 2010-20 की एक कार्ययोजना तैयार की है , जिसमें गंगा की डॉल्फिन के लिए खतरों को पहचानते हुए उन पर काम किया जा रहा है।
2009 में मनमोहन सिंह ने गंगा की डॉल्फिन को ‘राष्ट्रीय जलीय जीव’ की पहचान दी थी।
अब इसकी रक्षा के लिए एक ठोस कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। नीति निर्माताओं को सोचना होगा कि आम लोगों को इसके प्रति संवेदनशील कैसे बनाया जा सकता है। साथ ही वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम की तरह ही डॉल्फिन संरक्षण के लिए कौशल विकास करना होगा।
समाचार पत्रों पर आधारित।