प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करना कितना सही ?
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कोलकाता के आर जी कर अस्पताल में हुई दुर्घटना के विरोध में हो रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान की गई पुलिस कार्रवाई को गलत ठहराया है। इस प्रकरण में न्यायालय के दो कथन महत्वपमूर्ण कहे जा सकते हैं –
1) ‘राज्य की शक्ति को शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर नहीं थोपा जाना चाहिए’
2) कानून प्रवर्तन एजेंसियों से ऐसी स्थितियों को ‘संवेदनशीलता के साथ‘ संभालने का आग्रह किया गया।
कुछ बिंदु –
- गृह मंत्रालय की भारतीय पुलिस के लिए बनी 1985 की आचार संहिता में यह अनिवार्य रूप से कहा गया है कि कानून को लागू करते समय, ‘अनुनय, सलाह और चेतावनी’ जैसे तरीकों को अपनाया जाना चाहिए।
- यदि बल का प्रयोग जरूरी हो जाए, तो इसे ‘न्यूनतम’ रखा जाना चाहिए।
- समस्या यह है कि अभी भी प्रदर्शनों को औपनिवेशिक समय के नियंत्रण कमांड लैंस से देखा जाता है। कानूनी सुरक्षा के बावजूद लोगों को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी शिकायतें व्यक्त करने की अनुमति नहीं दी जाती। लाठीचार्ज, पानी की बौछार डालना और प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए बल प्रयोग करने जैसी प्राथमिक कार्रवाई को उचित माना जाता है।
कुल मिलाकर, विरोध प्रदर्शन हिंसक हो सकते हैं। लेकिन कानून प्रवर्तन के लिए दमन करना पहला कदम नहीं होना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 22 अगस्त, 2024