पॉक्सो कानून का दुरूपयोग न हो

Afeias
23 Jun 2025
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  • पॉक्सो, 2012 (प्रोटेक्श्यान ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सैक्सुअल अफेंसेस एक्ट, 2012), अब एक ऐसा कानून बन गया है, जो दमनकारी सिद्ध हो रहा है। अदालती रिपोर्ट वर्षों से दिखा रही हैं कि किशोरों की यौन गतिविधियों को पूरी तरह से अपराध घोषित करना गलत है।
  • उच्चतम न्यायालय ने पॉक्सो के बारे में एमिकस क्यूरिया (कोई ऐसा, जो किसी मामले से जुड़ा न हो, परंतु मामले से संबंधित जानकारी दे सकता हो) के सुझावों पर अपने विचार देने के लिए भारत सरकार को नोटिस भेजा है।
  • 2013 में दिल्ली की जिला अदालतों में बलात्कार से जुड़े सभी मामलों में पारित निर्णयों के विश्लेषण से पता चलता है कि एक-तिहाई जोड़े आपसी सहमत से थे। पॉक्सो का गलत फायदा उठाते हुए उनके माता-पिता ने पुलिस कार्रवाई को आगे बढ़ाया था। ऐसे मामलों में कठोर कदम अन्ययायपूर्ण सिद्ध होते हैं।
  • यह मुद्दा किशोरों के निजी जीवन के अधिकार का है। उन्हें अपनी शर्तों पर पूरी तरह से स्वस्थ और प्राकृतिक तरीके से वयस्क होने का अधिकार है।
  • चुनौती यह है कि ऐसे किशोरों के परिवारों और पुलिस की नैतिकता को सिर्फ कानून बदलकर नहीं बदला जा सकता है। सरकार को चाहिए कि कानून में सुधार करके किशोरों के सहमति से बनाए यौन-संबंधों को अपराधमुक्त करे। सहमति को मान्यता दे। इसी में निजी और सार्वजनिक भलाई निहित है।

द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 मई, 2025