राजद्रोह कानून के दुरूपयोग को रोका जाए

Afeias
24 Jun 2021
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Date:24-06-21

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उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ का यह कहना निर्विवाद रूप से स्वागत योग्य है कि प्रेस की स्वतंत्रता के मद्देनजर देशद्रोह पर धारा 124ए, समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने पर धारा 153ए और विद्रोह-अशांति को भड़काने पर धारा 505 की फिर से व्याख्या करने की आवश्यकता है। फिर भी, सरकार की आलोचना को रोकने के लिए इस प्रकार के प्रावधानों के व्यापक दुरूपयोग के बारे में न्यायपालिका की इस जागरूकता का तब तक बहुत अधिक प्रभाव नहीं होगा, जब तक कि इन कानूनों के दुरूपयोग को रोकने के लिए ठोस कार्रवाई नहीं होगी।

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार, “बोले या लिखे गए शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, जो कोई भी भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, असंतोष उत्पन्न करेगा, उसे आजीवन कारावास या तीन वर्ष तक की कैद और जुर्माना अथवा सभी से दंडित किया जाएगा।’’
  • धारा 153ए में धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास स्थान, इत्यादि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहाद्र्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कार्य करना अपराध है।
  • धारा 505 में किसी भी वर्ग या समुदाय के खिलाफ किसी भी वर्ग या समुदाय को किसी अपराध के लिए उकसाने के इरादे से किया गया कार्य, दण्डनीय अपराध है।

इन तीनों ही धाराओं का दुरूपयोग सरकार ने केवल मीडिया की स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए ही नहीं, बल्कि छात्र नेताओं से लेकर कॉमेडियन तक पर किया है। इसके अलावा यह सिर्फ भारतीय दंड संहिता नहीं है, जिसका दुरूपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए किया जा रहा है। एक पत्रकार पर महामारी से निपटने में राज्य सरकार की आलोचना करने वाले पोस्ट के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया । गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) भी पर्याप्त सबूत के बिना लोगों पर मुकदमा चलाने, और उन्हें बंद करने के लिए सरकार का पसंदीदा हथियार है।

नागरिकों को उनकी बुनियादी स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए कानून के सभी दुरूपयोग को रोका जाना चाहिए। प्रतिनिधि सरकार को जवाबदेही बनाने के लिए जनता के पास यही तो एक शक्तिशाली अस्त्र है। अदालत भी राजनीतिक लाभ में न्यायिक मिलीभगत के विरूद्ध कार्रवाई कर सकती है। पर्याप्त आधार के बिना संगीन आरोप तय करने वाले निचली न्यायालय के न्यायाधीश और पुलिस, दोनों को ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दंडित किया जाना चाहिए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 2 जून, 2021

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