पत्रकारिता की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय
To Download Click Here.
भारत का संविधान अनुच्छेद 19 के माध्यम से मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। अन्य मौलिक अधिकारों की तरह यह स्वतंत्रता भी अबाधित नहीं है। इस पर राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कुछ उचित प्रतिबंध लगे हुए हैं।
संविधान, प्रतिबंध की तर्कसंगतता का परीक्षण करने के लिए बेंचमार्क का विवरण नहीं देता है। संवैधानिक न्यायालय भी तर्कसंगतता का परीक्षण करने के लिए एक मानक का उपयोग करने में ढीले रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि सभी स्तरों पर सरकारें पत्रकारों पर शिकंजा कसने के लिए मनमाने ढंग से प्रतिबंधों का इस्तेमाल कर रही हैं, और इस तरह मीडिया की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित कर रही हैं।
उच्चतम न्यायालय का महत्वपूर्ण कदम –
- मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड बनाम भारत संघ के अपने फैसले में न्यायालय ने मीडिया की स्वतंत्रता की गारंटी को बरकरार रखा है।
- इस अधिकार पर प्रतिबंध की तर्कसंगतता को निर्धारित करने के लिए परीक्षणों का एक सेट तैयार किया गया है। ये मानक राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर प्रतिबंध लगाने और सीलबंद लिफाफों के उपयोग के लिए निर्धारित किए गए हैं।
- अब सरकारों को चार चरणीय अनुपातिकता मानक के खिलाफ उपरोक्त दोनों आधार का बचाव करना होगा। मनमाने तरीके से अधिकारों को पलटा नहीं जा सकता है।
- न्यायालय ने आईबी के उस तर्क को खारिज कर दिया है कि सुरक्षा बलों और न्यायपालिका की आलोचना के कारण मीडिया सत्ता-विरोधी है।
उच्चतम न्यायालय का पूरा निर्णय संवैधानिक अधिकारों के बचाव में अत्यंत महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। उम्मीद है कि अब सरकारें अपने खिलाफ कहे जाने पर पत्रकारिता के लिए प्रतिबंधों का इस्तेमाल सोच-समझकर करेंगी।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 7 अप्रैल, 2023