पारिस्थितिकी को ध्यान में रखकर पॉम आयल उत्पादन बढ़ाया जाए

Afeias
08 Sep 2021
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Date:08-09-21

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भारत में ताड़ के तेल यानि पाम ऑयल की खपत बहुत अधिक है। इसे देखते हुए सरकार ने उत्पादन को बढ़ाने हेतु 5000 करोड़ के राष्ट्रीय मिशन को प्रायोजित किया है। इसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इस मिशन से अगले 15 वर्षों में दोगुना होने वाली पाम ऑयल की खपत को पूरा किया जा सकेगा।

कुछ मुख्य बातें –

  • वैश्विक पाम ऑयल उत्पादन का 10% भारत में खप जाता है। मांग की पूर्ति के लिए हमें 80 लाख टन पाम ऑयल आयात करता है। इसकी लागत 900-1000 करोड़ डॉलर होती हैं।
  • आयात को कम करने के लिए 1991 से प्रयत्न किए जा रहे हैं। लेकिन केवल 3.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही इसकी खेती की जा सकी है।
  • अध्ययनों से पता चलता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग और सिंचित क्षेत्र के विस्तार के परिणामतः पाम ऑयल के योग्य भूमि का विस्तार किया जा सकता है।
  • पाम ऑयल के उत्पादन को बढ़ाने हेतु सरकार ने पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्र, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को लक्षित विकास क्षेत्र के रूप में चुना है। परंतु इस क्षेत्र का लगभग 45-60% भाग पारिस्थितिकी की दृष्टि से उच्च महत्व वाला है।
  • इसमें से कुछ क्षेत्र धान की खेती वाला भी है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रति हेक्टेयर में 2 टन से कम धान उत्पन्न करने वाले किसानों को पाम ऑयल के उत्पादन हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • अन्य तिलहनों में प्रति हेक्टेयर 1 टन का उत्पादन देखा गया है। जबकि पाम ऑयल प्रति हेक्टेयर 3-4 टन उपज देता है।

नाजुक पारिस्थितिकी और जैव विविधता के महत्वपूर्ण भंडार वाले क्षेत्रों को पाम ऑयल के उत्पादन के लिए छेड़ना एक बड़ी भूल हो सकती है। रकबा बढ़ाने की योजना को इनपुट के लिए जनता के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए और फिर धान व तिलहन उत्पादकों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 24 अगस्त, 2021

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