सेना में लैंगिक समानता

Afeias
07 Sep 2021
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Date:07-09-21

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सेना में लैंगिक समानता की बात अक्सर होती रही है। इस हेतु महिलाएं, समान अवसरों के लिए एक कठिन लड़ाई लड़ती रही हैं। परिणामस्वरूप, हाल ही में ऐसा कदम उठाया गया, जब न्यायालय ने संविधान द्वारा निर्धारित समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में महिलाओं को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की आगामी प्रवेश परीक्षा में बैठने की अनुमति देते हुए एक अंतरिम आदेश पारित किया।

आदेश से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें –

  • निर्देश के बाद, परीक्षा पास करने वाली लड़कियों को एनडीए और आईएमए, नौसेना और वायुसेना अकादमियों में अध्ययन करने और कमीशन अधिकारी बनने की अनुमति मिलती है।
  • पीठ ने कहा कि सेना में महिलाओं के प्रवेश के रास्ते को बंद करना भेदभावपूर्ण है। ज्ञातव्य हो कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 19 समानता के मूल्यों की रक्षा करते हुए काम के लिए गैर-भेदभावपूर्ण अवसरों की अनुमति देते हैं। अतः न्यायालय का यह आदेश संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कहा जा सकता है।

पृष्ठभूमि –

इससे पूर्व फरवरी 2020 के एक ऐतिहासिक निर्णय में उच्च्तम न्यायालय ने सरकार को महिला सशक्तिकरण की नीति का पालन करने और शॉर्ट सर्विस कमीशन में स्थायी कमीशन देने के साथ ही, उन्हें युद्ध के अलावा अन्य सभी सेवाओं में कमांड पोस्टिंग देने के लिए कहा था।

अपने निर्णय में न्यायालय ने सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया था, जिसमें महिलाओं की शारीरिक स्थिति का हवाला देते हुए उन्हें स्थायी कमीशन से दूर रखे जाने की बात कही गई थी। न्यायालय ने तब सरकार से महिलाओं के प्रति इस रूढ़िवादी विचारधारा को बदलने को भी कहा था।

न्यायालय की इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि 1992 में सेना में शामिल होने के बाद से महिलाओं ने सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए भी सेना में महिलाओं को अवसर की समानता दी जानी चाहिए।

इस पूरे संदर्भ में, स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री की यह घोषणा कि लड़कियों को सैनिक स्कूलों में प्रवेश दिया जाएगा, उन्हें सेना में समान भूमिका और जीवन के लिए तैयार करने की दिशा में एक स्वागत योग्य कदम है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 20 अगस्त, 2021

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