पहाड़ों से मिलती चेतावनी

Afeias
26 Aug 2021
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Date:26-08-21

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हिमाचल प्रदेश में लगातार होने वाले भूस्खलन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां –

  • हिमाचल प्रदेश का अधिकांश हिस्सा भूस्खलन के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में है, जो विशेष रूप से जलविद्युत जैसी विनाशकारी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में बहुत सावधानी बरते जाने की चेतावनी देता है।
  • भारत के मानचित्र में भूस्खलन के खतरे वाले क्षेत्र या लैंडस्लाइड हजार्ड जोनेशन मैप में राज्य के 70% से अधिक क्षेत्र को ‘उच्च जोखिम’ और 14% को ‘गंभीर खतरे’ वाले क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है।
  • यहां भूकंप का खतरा प्रबल रहता है, क्योंकि यहां के पहाड़ भूगर्भीय दृष्टि से युवा हैं, और इसलिए सक्रिय हैं। राज्य के लगभग 32% क्षेत्र को भूकंप की दृष्टि से उच्च खतरे वाले क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • यहां के बांधों और जलविद्युत जैसी भारी इंजीनियर संरचनाओं को प्राथमिकता देने वाले विकासात्मक मॉडल में रॉक ब्लास्टिंग और पेड़ों की कटाई करनी पड़ती है, जो पहाड़ी ढलानों की अखंडता को खतरे में डालती है। किन्नौर के भूस्खलन से पता चलता है कि ढलानों के साथ विकसित सड़कों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। कुछ मामलों में तो सड़कें अपने आप ही नष्ट हो गई हैं।

राज्य में जलवायु परिवर्तन के प्रमुख खतरों को पहचानते हुए एक दशक पहले कार्ययोजना तैयार की गई थी। इसमें दीर्घकालिक उपचारात्मक उपायों पर कार्य करने की मंशा थी।

आपदा प्रबंधन से परे जाकर, अब वर्तमान स्थिति में निरंतर हो रहे भूस्खलन की घटनाओं को तुरंत प्रभाव से देखा जाना चाहिए। यद्यपि स्थायी पर्यटन और सेब के बाग से जुड़ी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए स्थानीय समुदायों के बीच व्यापक समर्थन है, लेकिन ये तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब पर्यावरण के नुकसान को रोका जाए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 13 अगस्त, 2021

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