नीति निर्माण में महिलाओं की भागीरदारी बढ़ाई जानी चाहिए

Afeias
15 Jul 2025
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वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक रिपोर्ट में भारत दो पायदान नीचे खिसक गया है। 148 देशों की सूची में भारत का 131 वां स्थान है। इस मामले में भारत दक्षिण एशिया में सबसे कम रैंक वाले देशों में आ गया है। इसके कारण क्या हैं –

1). सूचकांक को आर्थिक भागीदारी और अवसर; शिक्षा; स्वास्थ्य और अस्तित्व तथा राजनीतिक सशक्त्किरण के आधार पर तैयार किया जाता है।

2). चार आयामों में से आर्थिक भागीदारी और अवसर में भारत ने 0.9 प्रतिशत अंकों का सुधार किया है। अनुमानित अर्जित आय में समानता 28.6% से बढ़कर 45.9% हो गई है। श्रम बल भागीदारी दर गत वर्ष के 45.9% के समान रही है।

3). शिक्षा प्राप्ति और स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता (सरवाइवल) में भी सकारात्मक बदलाव आए हैं।

4). राजनीतिक सशक्तिकरण में असमानता बढ़ी है –

  • संसद में महिला प्रतिनितधित्व 2025 में 14.7% से गिरकर 13.8% हो गया है।
  • मंत्रिस्तरीय भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 6.5% से गिरकर 5.6% हो गई है।
  • विवादास्पद महिला आरक्षण विधेयक 1996 में पेश किए जाने के 27 साल बाद 2023 में संसद में पारित हुआ था। यह अधिनियम संसद और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है। जनगणना और परिसीमन के पूरा होने के बाद 2029 से यह लागू किया जाएगा।

मुख्य मुद्दा सूचकांक में ऊपर चढ़ना नहीं, बल्कि लैंगिक समानता संरचना का निर्माण करने का है। इसके अलावा रजनीतिक दलों को आंतरिक रूप से महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए किसी कानून की आवश्यकता नहीं है। समानता की शुरूआत यहीं से होनी चाहिए।

‘द हिंदूमें प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 मई 2025