निष्क्रिय संसद की कार्यवाही में होता क्षय

Afeias
20 Apr 2021
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 Date:20-04-21

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हाल ही में संसद के बजट अधिवेशन को समय से दो सप्ताह पूर्व ही समाप्त कर दिया गया है। अधिकांश नेता कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में व्यस्त हैं। यह प्रवृत्ति कुछ वर्षों से देखी जा रही है, और क्रमशः यह बढ़ती जा रही है। मार्च 2020 में नोवल कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन के कारण संसद अधिवेशन को जल्दी स्थगित करना पड़ा था। वर्षाकालीन सत्र में अधिकांश सांसदों के कोविड पॉजिटिव होने के कारण यह जल्द ही स्थगित कर दिया गया था।

सवाल यह है कि अन्य देशों की तर्ज पर समय की मांग के अनुसार, क्या इसे रिमोट तरीके से नहीं चलाया जा सकता। इतना ही नहीं, संसद के अन्य कार्यकलापों में क्रमशरू क्षय देखा जा रहा है, जो संवैधानिक प्रक्रिया के विरूद्ध है।

  • इस सत्र में 13 विधेयक प्रस्तुत किए गए, जिनमें से एक को भी संसदीय समिति के पास नहीं भेजा गया।
  • समितियों की क्षमता पर भी प्रश्न उठाए जाने लगे हैं। 2004-09 तक की 14वीं लोकसभा में संसदीय समिति को सौंपे गए विधेयकों में से जहाँ 60% अस्वीकृत किए गए थे, वहीं वर्तमान लोकसभा में इनकी संख्या गिरकर 11% रह गई है।
  • बहुत से महत्वपूर्ण विधेयकों को प्रस्तावित करने के कुछ ही दिनों के अंदर पारित कर दिया गया। इस सत्र में प्रस्तावित 13 विधेयकों में से 8 को पारित भी कर दिया गया है।
  • पिछले कुछ वर्षों में सामान्य विधेयकों को ‘धन विधेयक’ का टैग लगाकर राज्य सभा से बिना रुकावट पारित करवाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। ऐसे विधेयकों में इलैक्टोरल बांड जैसे अन्य कई विधेयक शामिल हैं, जिन्हें सरकार ने अपने हितों को साधने के लिए धन विधेयक की श्रेणी में रखा है।
  • बजट सत्र में यूं तो लोकसभा से सभी विभागों और मंत्रालयों के बजट को स्वीकृत करने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन इस बजट सत्र में लोकसभा ने केवल पाँच मंत्रालयों के बजट को चर्चा हेतु चुना था। इनमें से भी केवल तीन पर चर्चा की गई। कुल बजट के 76% भाग को बिना चर्चा के पारित कर दिया गया। यह प्रवृत्ति पिछले 15 वर्षों से चली आ रही है। इस दौरान बजट के 70% या 100% भाग को बिना चर्चा के पारित कर दिया गया है।
  • संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा में अध्यक्ष के साथ-साथ उपाध्यक्ष का भी चुनाव किया जाना चाहिए। वर्तमान लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं किया गया है।

लोकसभा की कार्रवाई में इस प्रकार का क्षय कोई नई बात नहीं है। पहले भी ऐसा होता रहा है। 2008 के मानसून सत्र का विस्तार क्रिसमस तक सिर्फ इसलिए किया गया था कि सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव दोबारा पेश न किया जा सके। इस सत्र में 17 मिनट के अंदर ही आठ विधेयक भी पारित किए गए थे। इसके बाद के लोकसभा काल में भी अवरोधों की कोई कमी नहीं थी, और सदन का बहुत सा समय व्यर्थ चला गया था। पिछले कुछ वर्षों में स्थितियां सुधरी भी हैं। विधेयकों पर चर्चा का अवरोधमुक्त वातावरण बना है।

लोकतंत्र में संसद की अहम् भूमिका होती है। यह ऐसी संस्था है, जो सरकार के कामों की जांच- परख करने के साथ ही समस्त विधायी प्रस्तावों के सभी पक्षों की विस्तृत समीक्षा करती है। संवैधानिक प्रतिबद्धता के नाते इसका कुशलता से काम करना जरूरी है। इस हेतु सांसदों को प्रक्रिया के पालन के लिए उपयुक्त समय दिया जाना चाहिए। साथ ही जन भागीदारी को भी स्थान दिया जाना चाहिए। संसद का कुशल संचालन ही देश के भविष्य को उज्जवल कर सकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित एम.आर.माधवन के लेख पर आधारित। 27 मार्च, 2021