नेट जीरो से शुद्ध लाभ
Date:24-03-21 To Download Click Here.
उत्तराखंड के तेजी से पिघलते ग्लेशियर, केरल की भीषण बाढ, बुंदेलखण्ड में भयंकर सूखा और पश्चिम बंगाल के तूफानों की तबाही जैसी कई आपदाओं के साथ भारत, लगातार ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को झेल रहा है। अन्य देशों की तुलना में भारत का प्रतिव्यक्ति कार्बन उत्सर्जन बहुत कम है। फिर भी हम सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक हैं। जलवायु परिवर्तन के लिए कम उत्तरदायी होते हुए भी हमें 2050 तक ग्रीन हाउस गैस ( जी एच जी ) के उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
जीएचजी को शून्य करने की दिशा में अन्य देशों के प्रयास –
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, प्रति वर्ष वैश्विक उत्सर्जन लगभग 52 अरब टन है। इसमें भारत 3.5 अरब टन के लिए ही भागीदार है। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए 110 देशों ने 2050 तक जीरो या शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
- चीन ने यह लक्ष्य 2060 रखा है।
- अमेरिका अभी काफी पीछे है।
- सभी देश ग्लोबल वार्मिंग को 1.5-2âc तक संतुलित रखना चाहते हैं। यह लक्ष्य सन् 2100 तक के लिए रखा जा रहा है।
- बिल गेट्स ने अपनी पुस्तक ‘हाउ टू अवॉयड ए क्लाइमेट डिजास्टर’ में एक बड़ी वैश्विक आपदा को टालने के लिए 2050 तक जीरो उत्सर्जन को जरूरी बताया है।
भारत का कदम –
- पेरिस समझौते के अनुसार 2005 की तुलना में 2050 तक भारत को कार्बन इंटेंसिटी में 30-35% की कमी लानी चाहिए थी। भारत ने इस लक्ष्य को हासिल कर लिया है।
- अगर हम 5% वार्षिक जीडीपी की औसत विकास दर पर भी चलते हैं, तो 2020 से 2050 तक यह चैगुना होने की उम्मीद होगी। अगर हम 2005 की तुलना में गैस उत्सर्जन 50% भी कम करते हैं, तो भी 1.4 अरब टन के लिए जिम्मेदार होंगे। अतः अमेरिका की तुलना में, उत्सर्जन के लिए 10% का जिम्मेदार होते हुए भी हमें जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को लेकर चलना चाहिए।
- इस हेतु एक जलवायु परिवर्तन कानून बनाया जा सकता है। इसमें जलवायु परिवर्तन आयोग अंतर्निहित हो, जो इस पर सरकार को सलाह दे, और लक्ष्य प्राप्ति के हर कदम पर नजर रख सके।
- इस कानून में उत्सर्जन संबंधी ऐसा बजट हो, जो जलवायु के प्रभाव पर घरेलू कार्ययोजना निर्धारित कर सके।
- यह आयोग राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन जोखिम आकलन की दिशा में भी काम करें।
- कानून में राष्ट्रीय अनुकूलन योजना भी बनाई जाए।
- नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत को बड़े निवेश की जरूरत रहेगी। यह तभी संभव होगा, जब हम अपने को विश्वसनीय और वैध तरीके से सुगम बनाएंगे।
शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य से भारत अति प्रतिस्पर्धी, पर्यावरणीय रूप से धारणीय, लचीला और टिकाऊ बन सकेगा। यह वित्तीय संकट और कोविड-19 जैसी महामारियों से निपटने में सक्षम होगा। निवेश में तेजी आएगी, उच्च गुणवत्ता वाले रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सकेंगे और स्थायी समृद्धि आएगी।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित जयंत सिन्हा के लेख पर आधारित। 11 मार्च, 2021