मातृत्व मृत्यु दर पर कुछ तथ्य
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- भारत ने मातृत्व मृत्यु दर के मामले में हाल ही में सफलता प्राप्त की है। 2015-17 और 2017-19 के बीच यह अनुपात 122 से 103 पर आ गया है।
- 2030 तक भारत के धारणीय विकास लक्ष्य के अनुसार इस अनुपात को 70 से नीचे लाना है। हाल ही में मिली सफलता के बाद ऐसा लगता है कि भारत, इस लक्ष्य को समय से पहले प्राप्त कर लेगा।
- इस मामले में भारत को बेलारूस, पोलैण्ड और यूके की कार्यप्रणाली को समझने और अपनाने की जरूरत है, जो मातृत्व मृत्यु दर अनुपात को एकल अंकों में ला चुके हैं।
- भारत जैसे विशाल गणराज्य में राज्यों के प्रदर्शन में दिख रही असमानताओं को समझने और उन्हें दूर करने की जरूरत है। जहाँ केरल की मातृत्व मृत्यु दर 42 से 30 पर आ गई है, वहीं उत्तर प्रदेश की अभी भी 167 है।
- इस क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियां लगातार चढ़ते रहने के लिए राज्य या क्षेत्रवार समाधान अलग-अलग होंगे। एक को शादी की उम्र बढ़ाने पर ध्यान देने की आवश्कयता हो सकती है, और दूसरे को प्रसवपूर्व देखभाल पर ध्यान देने की।
- केंद्र को भी इससे जुड़ी विभिन्न योजनाओं का निष्पक्ष मूल्यांकन करने और निवेश बढ़ाने की जरूरत है।
- इस क्षेत्र में आयरन और फॉलिक एसिड की कमी एक बड़ी समस्या है। इन सप्लीमेंट के वितरण से भी गंभीर एनीमिया को कम नहीं किया जा सका है। इस पर काम करना होगा।
- महामारी के दौरान और पश्चात् प्रजनन देखभाल सेवाओं पर प्रभाव पड़ा है। संस्थागत प्रसव, मातृत्व मृत्यु दर में सुधार का प्रमुख कारक है।
- आशा कार्यकर्ताओं की इस क्षेत्र में महत्पूर्ण भूमिका है। दूर-दराज के इलाकों में प्रसव काल की देखभाल और स्वास्थ परामर्श के लिए इनको और भी प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
मातृत्व मृत्यु दर को कम करते जाने के लिए माता के स्वास्थ को अच्छा रखना, एक बहु-क्षेत्रीय प्रयास है, जिसमें शिक्षा और पोषण से लेकर गर्भ निरोधकों और संस्थागत प्रसव तक के इनपुट से बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 मार्च, 2022
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