मातृत्व से संबंधित हमारी विचारधाराएं

Afeias
13 Sep 2019
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Date:13-09-19

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हाल ही में लोकसभा ने सरोगेसी विधेयक 2019 पारित किया है। इसके माध्यम से भारत में सरोगेसी को नियमित करके उसे नैतिक और कल्याणकारी बनाया जा सकेगा। यह विधेयक 2018 में प्रस्तावित विधेयक का ही प्रतिरूप है।

विधेयक के पारित होने से, सामाजिक मामलों का प्रबंधन करने में आपराधिक कानून पर सरकार के भरोसे का पता चलता है। इस विधेयक से एकल, विवाह-विच्छेद या विधवा, विधुर, समलैंगिक और अविवाहित व्यक्तियों को सरोगेसी के माध्यम से संतान-प्राप्ति पर रोक लगा दी गई है। यह पाँच वर्ष से विवाहित दंपत्ति, जो संतान उत्पन्न करने में अक्षम हैं, को ही सरोगेसी के माध्यम से संतान प्राप्ति का अधिकार देता है। इस प्रकार विधेयक जबरदस्त भेदभावपूर्ण और मनमाना कहा जा सकता है।

भारतीय न्याय व्यवस्था में एकल व्यक्ति की प्रजनन स्वायत्तता को मान्य रखा गया है। साथ ही यह विधेयक लिव-इन-रिलेशनशिप और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के भी अधिकारों का हनन करता है। नवतेज सिंह नाहर बनाम केन्द्र सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय ने समाज लिंग के दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने यौन-संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। भारत में एकल अभिभावक के रूप में संतान गोद लेने का भी अधिकार है। इन सभी स्थितियों के अनुसार विधेयक विरोधाभासी है।

2002 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् और 2010 व 2014 के सहायक प्रजनन तकनीक विधेयक ने व्यावसायिक सरोगेसी को मान्य किया था। इसे कल्याण या भलाई से जोड़ने की बात उन मामलों के बाद आई, जिनमें सरोगेसी से उत्पन्न शिशु को अनाथ छोड़ा गया, सरोगेट माता का शोषण किया गया और धनी विदेशियों द्वारा गरीब भारतीय महिलाओं का संतानोत्पत्ति के लिए इस्तेमाल किया गया। 2015 में एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर दायर की गई जनहित याचिका में भारत में सरोगेसी के व्यावसायिक इस्तेमाल पर रोक की मांग की गई थी।

यह सत्य है कि सरोगैसी के व्यावसायिक इस्तेमाल में शोषण की बहुत अधिक संभावना रहती है। लेकिन अपवादों के आधार पर इस प्रकार का कानून बनाना उचित नहीं है। शोषण का कारण, सरोगेट माताओं और सरोगेसी क्लीनिक, एजेंट और इच्छित अभिभावकों के बीच अनुबंधों में अनियमितताएं थीं। इन सबको तो नियमितताओं के माध्यम से पारदर्शी बनाया जा सकता है। इस प्रकार के कानून बनाकर सरोगेसी की अवैध प्रथाओं को बल मिलेगा।

इस कानून से सरोगेट माँ बनाने वाली एजेंसियों के अधिकारों को सरकार खत्म कर रही है। सरोगेट माताओं से उनकी फीस व अन्य अनुबंधों के बारे में पूछकर इसका समाधान ढूंढा जा सकता है।

विधेयक के अनुसार सरोगेट माँ को नजदीकी संबंधी होना चाहिए। इसका कारण यही है कि ऐसा सोचा जाता है कि परिवार में शोषण की संभावना कम होती है। परन्तु भारतीय परिवारों के पितृसत्तात्मक परिवार के स्वरूप को देखते हुए कई बार परिवारों की नौजवान महिलाओं को संबंधियों के लिए सरोगेट माँ बनने को मजबूर किया जाता है। इस नैतिकता के बारे में सरकार से प्रश्न पूछा जाना चाहिए।

विधेयक में सरोगेट माता को चिकित्सा संबंधी शुल्क और केवल 16 माह का बीमा कवर दिए जाने का प्रावधान है। इससे संबंधित बनी स्थायी समिति ने एक ऐसे मॉडल सरोगेसी की सिफारिश की है, जिसमें सरोगेट माता की मनोवैज्ञानिक कांउसलिंग, गर्भकाल तक उसकी आय की क्षतिपूर्ति, बच्चों की देखभाल में सहयोग, आहार पूरक सहयोग एवं दवाएं, गर्भकाल के लिए वस्त्र एवं प्रसव पश्चात की देखभाल आदि का प्रावधान हो।

यह विधेयक, प्रजनन तकनीकों और महिलाओं के शोषण से सुरक्षा को नियमित करने का व्यर्थ प्रयास करता हे। सरोगेसी उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है, जिनको सरोगेट माता के माध्यम से संतान की प्राप्ति हो सकती है, और दूसरी ओर सरोगेट माता को भी आर्थिक लाभ मिलता है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित गार्गी मिश्रा के लेख पर आधारित। 9 अगस्त, 2019

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