मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करें या नहीं ?
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हाल ही में कर्नाटक विधानसभा का एक विधेयक चर्चा में है। यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है, और इसे धर्मांतरण विरोधी भी माना जा रहा है। इस विधेयक पर चर्चा पूरी होने से पहले ही कर्नाटक की भाजपा सरकार ने मंदिरों को सरकारी आधिपत्य से मुक्त करने हेतु कानून प्रस्तावित करने की घोषणा कर दी है।
मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग क्यों ?
- कर्नाटक में हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रखने के लिए हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1997 है, जिसे मुजराई अधिनियम भी कहा जाता है।
- राज्य में एक गलत सूचना फैली कि हिंदू समूहों द्वारा एकत्र किए गए धन को गैर-हिंदू धार्मिक संस्थानों के लिए डायवर्ट किया जा रहा है। इसके बाद मंदिरों को नियंत्रण मुक्त करने की मांग बढ़ी।
क्या लाभ, क्या हानि, क्या आशंकाएं –
- भाजपा के इस कदम से उसे राजनीतिक लाभ मिलना निश्चित है।
- देश के अन्य भागों में भी मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग जोर पकड़ने लगी है।
- प्रस्तावित कानून ऐसे समय में आया है, जब राज्य भर के कई शक्तिशाली धार्मिक मठों ने प्राचीन मंदिरों को अपने कब्जे में लेने में रूचि दिखाई है। दरअसल, ये मंदिर आमदनी का अच्छा स्रोत हैं।
- इस मांग से मंदिरों में सामाजिक बहिष्कार और एक विशेष जाति द्वारा मंदिर प्रबंधन को हथियाने की आशंका बढ़ गई है।
- इस कदम से केवल अमीर मंदिरों को लाभ होने की संभावना है। 34,000 से कम आय वाले मंदिर सरकार के नियंत्रण में बने रह सकते हैं।
- हिंदू मंदिरों के पुजारियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है, क्योंकि इससे उन्हें अपने पद असुरक्षित होने की आशंका है।
भाजपा का तर्क है कि नियंत्रण मुक्त मंदिरों को ट्रस्ट के अधीन रखने से, प्रशासनिक और वित्तीय जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ेगी। दूसरी ओर, हाल के वर्षों में राज्य के तीन प्रसिद्ध मंदिरों पर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगने के बाद उन्हें मुजराई विभाग में ले लिया गया था। अभी कानून का स्वरूप बहुत स्पष्ट नहीं है। आने वाले समय में उम्मीद की जा सकती है कि सरकार अपने राजनीतिक हितों की रक्षा के अलावा देश की सामाजिक और धार्मिक शुचिता को बनाए रखने के लिए मार्ग ढूंढ निकालेगी।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित शरद एस श्रीवत्स के लेख पर आधारित। 16 मार्च, 2022