मानव-तस्करी संबंधी नीतियों में सक्रियता लाई जाए

Afeias
13 Aug 2021
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Date:13-08-21

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भारत में मानव तस्करी को दंडित करने के लिए कानून के होते हुए भी यह अपराध अपने चरम पर है। 30 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र ने ‘मानव तस्करी विरोध दिवस’ के रूप में चिन्हित किया है। इसके मद्देनजर अगर अप्रैल 2020 और जून 2021 के बीच की स्थिति देखें, तो एक एन.जी.ओ. की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 9000 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया है।

  • मानव तस्करी कई रूपों में की जाती है। इसमें अगर हम बच्चों की तस्करी की बात करें, तो पाते हैं कि महामारी के चलते व्यवसाय-व्यापार में हुए नुकसान की पूर्ति के लिए बच्चों की तस्करी के जरिए बालश्रम में बढ़ोत्तरी हुई है। अनाथ हुए बच्चों की संख्या को देखते हुए तस्करी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
  • वर्तमान दौर में इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग ने साइबर ट्रैफिकिंग को बढ़ा दिया है। महामारी के दौरान खत्म हुए आजीविका के साधनों और आर्थिक संकट के चलते अनेक युवाओं और अन्य को रोजगार का लालच देकर फंसाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर ऐसी जालसाजी धड़ल्ले से की जा रही है।

मानव तस्करी रोकने में सरकार असमर्थ क्यों ?

हाल ही में सरकार ने संसद में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि वह मानव तस्करी से जुड़े साइबर ट्रेफिकिंग डेटा की पूर्ण जानकारी रखने में असमर्थ रही है।

राज्यों में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट होते हुए भी इनमें नीतियों के कार्यान्वयन की भारी कमी है।

कानून का मसौदा –

नए मानव तस्करीरोधी कानून के लिए मसौदा तैयार किया जा रहा है। इसमें सरकार को समस्या से जुड़े कुछ निम्न बिंदुओं का अवश्य ध्यान रखना चाहिए –

  • कानून के कार्यान्वयन में कोई ढील न हो।
  • संबंधित डेटा को समय पर अपलोड कर पूरा व सटीक ब्यौरा रखा जाए।
  • मानव तस्करी से जुड़े मामलों के प्रबंधन को दुरूस्त किया जाए।
  • ‘फास्ट ट्रैक‘ कोर्ट बनाए जाएं।
  • क्षतिपूर्ति समय पर और पर्याप्त हो।
  • पीड़ितों की काउंसलिंग की व्यवस्था हो। तथा
  • पीड़ितों के पुनर्वास का प्रबंध हो।

मानव तस्करी के विरोध में काम करने वाली यूनिटों को अगर पर्याप्त निधि और कर्मचारी मिल सकें, तो यह जमीनी स्तर पर उनके पैटर्न को समझकर तस्करों पर नकेल कस सकती है। नाईजीरिया में शिक्षा के विस्तार और सुरक्षित रोजगार उपलब्धता के माध्यम से मानव तस्करी पर काफी नियंत्रण पा लिया गया है। भारत में भी इन तरीकों को अपनाया जा सकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित मदन बी लोकर और श्रुति नारायण के लेख पर आधरित। 30 जुलाई, 2021

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