महाराष्ट्र की राजनीतिक घटनाओं से मिलता सबक
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हाल ही में महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम में दल-बदल विरोधी कानून के तहत एक गुट के 14 सदस्यों को अयोग्य घोषित करने का निर्णय लिया गया था। यह एक न्यायिक कार्य है, और इसकी शक्ति विधायिका के पीठासीन अधिकारी के हाथ में नहीं होनी चाहिए। इसे किसी स्वतंत्र प्राधिकारी को दिया जाना चाहिए।
कुछ बिंदु –
- महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों में से दो के बीच असली शिव सेना होने की होड़ लगी हुई थी।
- विधानसभा के अध्यक्ष ने एकनाथ शिंदे के दल को असल शिव सेना घोषित कर दिया।
- अध्यक्ष का निर्णय उच्चतम न्यायालय की एक पीठ के निर्णय के कुछ पहलुओं पर आधारित था। इस निर्णय में राज्यपाल के तत्कालीन सरकार को फ्लोर टेस्ट देने और अध्यक्ष के शिंदे गुट द्वारा नियुक्त पार्टी व्हिप को मान्यता देने के निर्णय को गलत बताया गया था। इस निर्णय के उलट अध्यक्ष ने उद्धव ठाकरे दल के व्हिप को अमान्य और शिंदे दल के व्हिप को मान्य करार दिया।
- इस आधार पर भले ही ठाकरे दल उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है, लेकिन न्यायालय ने ही पहले यह स्वीकार किया था कि दलबदल के प्रश्न पर निर्णय देते समय अध्यक्ष को वास्तविक दल की भी घोषणा करनी पड़ सकती है। इसका लाभ शिंदे दल को मिला।
कुल मिलाकर, दलबदल संबंधी विवादों को अगर अध्यक्ष पर छोड़ा जाता है, तो उसमें राजनीतिक भेदभाव का प्रभाव देखने को मिल सकता है। अतः विधायिका में अयोग्यता घोषित करने वाले मामलों को स्वतंत्र शक्ति के हाथों में रखा जाना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 12 जनवरी, 2024
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