लोकतंत्र के भिन्न रंग
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चुनावों का मौसम चल रहा है। न केवल भारत बल्कि अमेरिका, रूस और ब्रिटेन के लोकतंत्र भी चुनाव के विशाल उत्सव को संपन्न कराने में गर्व से जुटे हुए हैं। हालांकि सभी लोकतंत्र उतने स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हैं।
कुछ बिंदु –
- रूस में ब्लादिमिर पुतिन को लगातार तीसरी और वैसे पांचवी बार राष्ट्रपति घोषित किया जाएगा। यह पूर्व निर्धारित इसलिए है, क्योंकि क्रेमलिन शैली का लोकतंत्र, हमारे लोकतंत्र से बिल्कुल अलग है। यूं तो कागजों पर यह एक ही प्रक्रिया है, जिसमें लोकप्रिय राजनीतिक प्रतिनिधित्व और जनादेश के समान नियम हैं।
- अमेरिका के पिछले चुनाव में मतदान प्रक्रिया के बारे में जिस प्रकार के प्रश्न उठाए गए और कीचड़ उछाला गया, उसे लोकतांत्रिक चुनाव के लिए बड़ी चुनौती माना जा सकता है।
- कुछ देशों में विपक्षी नेताओं को मैदान से बाहर कर दिया जाता है। जेल में डाल दिया जाता है। गलत सूचनाएं फैलाकर किसी एक नेता या दल को तबाह कर दिया जाता है।
कुल मिलाकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया असंख्य चुनौतियों का सामना कर रही है। पूरी दुनिया उदार लोकतंत्र से दूर होती जा रही है। केवल चुनाव कराना ही सफल लोकतंत्र का एक मात्र मापदंड नहीं है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के साथ, लोकतंत्र तब सफल होते है, जब संस्थाएं, सम्मेलन और प्रथाएं बिना किसी डर के चलने की शक्ति रखती हो।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 मार्च, 2024