लैंगिक समानता की ओर इंगित करती प्रागैतिहासिक खोज

Afeias
24 Nov 2020
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Date:24-11-20

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हमारे लिए प्रागैतिहासिक खोज निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया बनती जा रही है। खुदाई में समय-समय पर मिलने वाले अवशेषों से अचंभित करने वाले निष्कर्ष सामने आते ही रहते हैं। 2018 में एंडीज पर्वत माला से मिले मानव अवशेषों में एक शिकारी के अवशेष को अभी तक पुरूष का समझा जाता रहा है। परंतु हाल ही में किए गए अनुसंधान से उसके महिला होने का प्रमाण मिला है। यह कंकाल इस शिकारी महिला के अस्तित्व को 9000 वर्ष पूर्व का प्रमाणित करता है।

प्रयोगशाला में इस कंकाल पर हुए शोध ने अभी तक प्रचलित हमारी विचारधारा के आयाम को ही बदलकर रख दिया है। शोध करने वाली टीम अब इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि उस दौर के मिले अवशेषों में से 30-50% महिला शिकारियों के कंकाल हैं।

19वीं शताब्दी के मानवशास्त्रीय अध्ययनों से अभी तक यही माना जाता था कि शिकारी समुदायों के मनुष्यों में अधिकतर पुरूष ही शिकारी होते थे , और अन्य सामग्री इकट्ठा करने का काम महिलाओं का होता था। विज्ञान और साहित्य से लेकर लोकप्रिय संस्कृति के फिल्म जैसे उत्पादों में भी यह मिथक चला आ रहा था कि प्राचीन काल की महिलाएं केवल घरेलू कामों में ही संलग्न रहती थीं। इस खोज ने वर्तमान समाज में चली आ रही लैंगिक अवधारणा के विचार को झकझोर कर रख दिया है कि जब प्रागैतिहासिक स्त्री-पुरूष साथ मिलकर शिकार और बच्चों का पालन-पोषण कर सकते थे , तो आज की नारी को समानता के अधिकार से वंचित क्यों रखा जाता है।

इस प्रकार 70,000 साल के विशाल कालखंड डमें लैंगिक अवधारणा होमो सेपियंस की प्रधानता के दौरान शुरू हुई लगती है। अगर ऐसा है , तो लिंग आधारित श्रम विभाजन क्या कृषि और देहाती बस्तियों की शुरूआत के साथ जन्मा ? क्या इसका प्रभाव आधुनिक शिकारी और इकट्ठा करने वाले समुदायों पर भी पड़ा ?

सदियों से चल रही जैव-वैज्ञानिक और लिंग के आधार पर चलने वाली भिन्नता , जो भविष्योन्मुखी तकनीकी परिवर्तनों और प्रागैतिहासिक खोजों , दोनों में ही मिलती है , की विसंगति के लिए समय ही तारणहार सिद्ध हुआ है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 7 नवम्बर , 2020