लाल खतरे की घटती आक्रामकता  

Afeias
11 Oct 2021
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Date:11-10-21

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हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री सहित माओवादी नक्सली हिंसा से प्रभावित दस राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक हुई है। इस बैठक में नक्सली हिंसा की लगातार कम होती घटनाओं की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

नए आंकड़े –

माओवादी हिंसा से होने वाली मृत्यु की वार्षिक दर, दशकों में पहली बार 200 से नीचे गिर गई है। साथ ही, माओवादी प्रभाव भी 96 जिलों से सिमटकर 53 जिलों तक रह गया है। इनमें भी 25 जिलों में यह अति सक्रिय है।

इस स्पष्ट सफलता के बावजूद, माओवादियों की मुख्य कमान संरचना बरकरार है। इस वर्ष की शुरुआत में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों पर हुए घातक हमले में कम-से-कम 22 जवान मारे गए थे।

माओवादियों का फैला जाल और इसे काटने के प्रयास –

कोई लोकप्रिय अपील नहीं होने के बावजूद माडवी हिडमा जैसे मायावी प्रभाव वाले माओवादी कमांडर, प्रतिबद्ध लड़ाकों के छोटे समूहों के साथ काम कर रहें हैं। इनका जाल छत्तीसगढ़ के बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर और सुकमा जिलों के अलावा महाराष्ट्र और ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में फैला हुआ है।

प्रयास –

  • सुरक्षा अभियान महत्वपूर्ण हैं, परंतु इस चुनौती से पार पाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
  • खनिजों से समृद्ध क्षेत्रों तथा बांस और तेंदू-पत्ता जैसे छोटे वन उत्पादों में जबरन वसूली ही माओवादियों के धन का स्रोत है। केवल तेंदूपत्ता से ही सालाना राजस्व 20,000 करोड़ रु. होने का अनुमान है। ग्राम पंचायतें इन वन उत्पादों की नीलामी करती हैं, और माओवादी इसमें बिचैलियों की भूमिका निभाकर भी धन कमाते हैं।

इस प्रकार ठेकेदार-माओवादी गठजोड़ को तोड़ने के लिए लघु वनोपज के व्यापार को नजदीक से देखने व जानने की जरूरत है।

  • आखिर गरीबी ही माओवादियों की संख्या को बढ़ाती है। इसलिए इस संस्कृति के खिलाफ देश का सबसे अच्छा हथियार कल्याणकारी राज्य को उन क्षेत्रों तक पहुंचाना है, जहां वह अभी तक नहीं पहुंचा है।

सुरक्षा-विकास की रणनीति ही माओवादी खतरे का दीर्घकालीन समाधान हो सकती है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 सितंबर, 2021