कृषि क्षेत्र की चुनौतियां और अवसर

Afeias
13 Sep 2024
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भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय में वर्तमान स्तर से लगभग छः गुना वृद्धि की आवश्यकता है। इसके लिए विशेष रूप से कृषि में व्यापक विकास दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इस राह में कई चुनौतियां भी हैं, और अवसर भी।

चुनौतियां –

  • भारत का कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण और बाजार पहुंच के मुद्दों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है।
  • लगभग 46% कार्यबल कृषि में लगा हुआ है। इसके बावजूद, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान मात्र 18% है। यह एक गंभीर असंतुलन है।
  • भारत की आबादी लगातार बढ़ रही है। इस बढ़ती आबादी की खाद्य आवश्यकतओं को पूरा करने के लिए कृषि अनुसंधान और विकास नवाचार पर ध्यान देने की जरूरत है।
  • 2047 तक, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 7% – 8% तक कम हो सकता है। फिर भी यह 30% से अधिक कार्यबल को रोजगार दे सकता है। इसके लिए वर्तमान विकास उपायों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है।

सरकारी पहल में छिपे अवसर –

  • किसानों की समृद्धि और सतत कृषि विकास को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की गई हैं।
  • 2019 में शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत किसानों को तीन किस्तों में सालाना 6000 रुपये वितरित किए जाते हैं।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का उद्देश्य मिट्टी के पोषक तत्वों के उपयोग को बताना है, जिससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पौष्टिक मोटे अनाज को बढ़ावा मिले।
  • कृषि अवसंरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) कोष का उद्देश्य कटाई के बाद प्रबंधन के बुनियादी ढांचे का विकास और आधुनिकीकरण करना है।
  • गांवों का सर्वेक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर तकनीक के साथ मानचित्रण पहल का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में पारदर्शी संपत्ति स्वामित्व सुनिश्चित करना है।
  • कृषि के लिए सरकार की रणनीतिक योजना 2047 तक कई प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है। इसमें कृषि उत्पादों की अनुमानित मांग, पिछले विकास उत्प्रेरकों से सबक, मौजूदा चुनौतियों और कृषि परिदृश्य में संभावित अवसर खोजना है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने 78 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया है। यह सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से जल-उपयोग दक्षता को बढ़ावा देता है।
  • 2016 में शुरू किया गया इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के माध्यम से मौजूदा बाजारों को एकीकृत करता है।

इस प्रकार, स्थायी प्रथाओं को अपनाने, तकनीकी नवाचारों का लाभ उठाने और रणनीतिक पहलों को लागू करने से किसानों की आय बढ़ सकती है तथा बढ़ती आबादी की खाघ मांगों को पूरा किया जा सकता है। इससे समावेशी और सतत विकास हो सकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित शौर्यभ्रत महापात्रा और संजीव पोहित के लेख पर आधारित। 24 अगस्त, 2024