जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि से जुड़ी समस्याएँ

Afeias
12 Apr 2025
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भारतीय रिजर्व बैंक के मार्च बुलेटिन में प्रकाशित एक अध्ययन में देश में वर्षा के वितरण में तेज बदलाव और खाद्यान्न फसलों पर इसके प्रभाव पर गंभीर चिंता जताई है। अध्ययन के अनुसार मानसूनी वर्षा अब भी भारतीय कृषि के लिए निर्णायक होती है, हालांकि हमारे पास आधुनिक सिंचाई सुविधाएं और जलवायु परिवर्तन के असर को बेअसर करने वाले बीज हैं।

  • वर्षा का तरीका बदलने या सूखे जैसी स्थिति से फसल उगाने का चक्र बदल जाता है और कीटों एवं पौधों से जुड़ी बीमारियों की समस्या भी बढ़ जाती हैं।
  • अतिवृष्टि से मक्के और तिलहन की उपज कम होती है। जून और जुलाई में कम वर्षा से दलहन, तिलहन व मक्के की फसल भूमि में नमी की कमी से प्रभावित होती है, क्योंकि बोआई देर से होती है, जिससे शुरूआती बढ़वार पर असर होता है।
  • पिछले वर्ष 365 में 322 दिन मौसम की अति देखी गई थी। इससे देश में 4.07 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फसल प्रभावित हुई थी।
  • बढ़ते तापमान और बाढ़ के कारण फसलों में पोषक तत्व कम होने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
  • पर्याप्त व सामान्य वर्षा से फसल की उत्पादकता बढ़ती है। जलाशयों में पानी के अच्छे स्तर से गेंहू, सरसों और दलहन जैसी फसलों की बोआई के लिए आदर्श स्थिति तैयार होती है।
  • इस वर्ष शानदार वर्षा और सटीक ठंड के कारण पिछले वर्ष के मुकाबले खरीफ का उत्पादन 7.9% और रबी का उत्पादन 6% बढ़ सकता है।

कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचाने के उपाय –

  • कृषि में जलवायु परिवर्तन सहने की क्षमता रखने वाले तौर-तरीके, नालियों की प्रणाली में सुधार, बाढ़ एवं सूखा प्रबंधन की तकनीक अपनाकर कृषि क्षेत्र में क्षमता एवं टिकाऊपन को बढ़ाया जा सकता है।
  • लंबे अरसे के लिए जल प्रबंधन पर भी हमें सतर्क रहना होगा।
  • प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देना चाहिए। इससे किसानों की आय और मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ेगी।
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