जलवायु के अनुरूप बदलनी होगी कृषि

Afeias
01 Jul 2021
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Date:01-07-21

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तेजी से होते जलवायु परिवर्तन को लेकर वैज्ञानिक बहुत समय से चेतावनी दिए जा रहे हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में करोड़ों लोगों का जीवनयापन जलवायु की अनुकूलता से जुड़ा हुआ है। अब परंपरागत कृषि पैटर्न में बदलाव की जरूरत है। खाद्यान्न उत्पादक क्षेत्रों में अत्यधिक दोहन से भूमि की उर्वरता घट रही है, और उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा है।

जलवायु परिवर्तन के अनुरूप कृषि पैटर्न में बदलाव के लिए किसानों को तभी तैयार किया जा सकता है, जब वह उन्हें लाभ का सौदा लगे। इस हेतु सरकार को नीतिगत परिवर्तन करने होंगे।

  • सर्वप्रथम, कृषि की आधुनिक तकनीकों का प्रसार किया जाना चाहिए।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य को सुनिश्चित करना, वित्तीय मदद एवं उपज की खरीद के लिए उन्हें आश्वस्त करना होगा।
  • मुफ्त बिजली, विभिन्न इनपुट में सब्सिडी के प्रावधानों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
  • देश के 1600 ब्लॉक ऐसे हैं, जहां ज्यादा पानी वाली फसलों की खेती पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है।
  • पूरे देश को 15 जलवायु क्षेत्र में बांटा गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने कृषि के लिहाज से इन्हें 121 एग्रो क्लाइमेटिक जोन में विभाजित किया है। फसलों का चयन, जोन के हिसाब से किया जाना चाहिए।

फसल विविधीकरण कृषि क्षेत्र की ज्यादातर चुनौतियों का समाधान है। हरियाणा, तेलंगाना और उत्तरप्रदेश में इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए किसानों के समक्ष कई तरह की योजनाएं शुरु की गई हैं। हरियाणा में धान की जगह अन्य फसलों की खेती करने वालों को प्रति एकड़ नकद सब्सिडी देने का प्रावधान है। तेलंगाना और उत्तरप्रदेश में ‘वन डिस्ट्रिक, वन प्रोडक्ट’ योजना शुरु की गई है। इन योजनाओं के नतीजे उत्साहजनक मिलने लगे हैं।

कृषक के लिए लाभदायक और लुभावनी रणनीति से सरकार कृषि को लाभ का व्यवसाय बना सकती है, और जलवायु परिवर्तन से होने वाली आजीविका की हानि को कुछ कम अवश्य कर सकती है।

विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।