हिंदुत्व युग में लव जिहाद

Afeias
11 Dec 2020
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Date:11-12-20

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भारत में विभिन्न क्षेत्रों, जातियों या धर्मों के बीच होने वाले अंतरजातीय विवाहों को जातिवाद , धार्मिक रूढ़िवाद और माता-पिता के डर से रोका जाता रहा है। हमारे देश में अभी भी अंतरजातीय विवाह बड़े पैमाने पर नहीं होते हैं। अंतर धार्मिक विवाहों की संख्या तो और भी कम है। सर्वेक्षण बताते हैं कि अभी भी अधिकांश भारतीयों का विवाह जाति और धर्म के अंदर ही किया जाता है। सभी आयु वर्ग के लगभग 70% से 80% भारतीय, अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह को अस्वीकृत करते हैं। हममें से जाति और धर्म से बाहर विवाह करने वालों की संख्या 5% और 2% ही है।

फिर भी दशकों से, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने सहयोगियों के माध्यम से इन 2% लोगों पर हमला करते रहे हैं। इनका उद्देश्य ऐसे विवाहों को रोकना या तोड़ना रहा है। हाल ही में उन्होंने ‘लव जिहाद’ का नाम देकर ऐसे विवाहों को एक षड्यंत्र का हिस्सा बना डाला है। इसकी शुरूआत सन् 2000 के आसपास कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों और केरल से की गई थी। संघ परिवार का मानना है कि हिंदू-मुस्लिम विवाहों के पीछे हिंदू महिला को बहकाकर उसका धर्म परिवर्तन कराना है। इससे उनकी संतानों के द्वारा मुस्लिम आबादी को बढ़ाया जा सकता है।

2009 में कर्नाटक में ‘लव जिहाद’ के नाम पर दर्ज हुई एक शिकायत को सी आई डी ने नकारते हुए बताया था कि यह पूर्णतः दो वयस्कों के बीच प्रेमपूर्वक किया गया विवाह है। धीरे-धीरे इसकी लहर उत्तर भारत तक भी फैलती गई। 2014 में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने पाँच ऐसे ही विवाहित जोड़ों के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा था कि किसी के वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप न किया जाए। ऐसा विवाह व्यक्तिगत आस्था एवं हृदय व मस्तिष्क की गहराइयों से जुड़ा हुआ माना गया था। इसके बाद केरल , कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में जितने भी ‘लव जिहाद’ के मामले दर्ज हुए , उनमें से कोई भी सही नहीं निकला।

इसके बावजूद संघ परिवार अपने सांप्रदायिक राजनैतिक कार्यक्रम को जारी रखते हुए हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसके विरूद्ध कानून बनवाने में सफल हो गया है। लेकिन सोचने की बात यह है कि अगर अंतर-धार्मिक विवाह को धर्मांतरण के एक आसान उपाय के रूप में इस्तेमाल में लाया जा रहा है , तो इसके लिए राज्य सरकारों और नौकरशाहों को सबसे पहले दोषी माना जाना चाहिए। नौकरशाहों ने स्पेशल मैरिज एक्ट के माध्यम से अंतर धार्मिक और धर्म के अंदर ही होने वाले विवाहों को कठिन बना दिया है। इस प्रक्रिया को कई बार सरकार और भी जटिल बना देती है। 2018 में न्यायमूर्ति राजीव नारायण रैना ने हरियाणा सरकार को ‘कोर्ट मैरिज लिस्ट’ चैक करने पर फटकार लगाई थी, और राज्य सरकार से विवाह को बाधित करने के बजाय सुविधा प्रदान करने का आग्रह किया था।

अंतर-धार्मिक संबंधों को धर्मांतरण से जोड़ने वाला यह कपटी अभियान समाज में जहर घोलने का ही काम करेगा। हादिया (पूर्व में अखिला) और शफीन जहान के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि आपसी सहमति से किए गए दो वयस्कों के विवाह में किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। भाजपा राज्य सरकारों द्वारा बनाया गया ‘विधि विरूद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश – 2020’ कानून तीसरे पक्ष की शिकायत के आधार पर विवाह की वैधता को जांच का विषय बनाकर इस आधार को खत्म कर देता है।

समाचार पत्रों पर आधारित।