विश्व की जीत की ओर बढ़ना

Afeias
10 Dec 2020
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Date:10-12-20

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अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि ”मैं ऐसा राष्ट्रपति बनने का संकल्प लेता हूँ, जो तोड़ना नहीं, जोडना चाहता है। जो राज्यों को नीला या लाल नहीं देखता,बल्कि केवल यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के रूप में देखता है।” हमारा देश भारत भी सामाजिक और राजनीतिक तौर पर बंटा हुआ है। केवल भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान, फ्रांस, तुर्की, ब्राजील और यूथोपिया जैसे कई देश कमोवेश इस प्रकार से विभाजित हैं।

इस विभाजन का एक ही समाधान है, और वह है- केंद्र और राज्य सरकारों की संस्थाओं में इस प्रकार से सुधार हो कि वे बिना किसी पक्षपात और अन्याय के सभी नागरिकों के लिए समान रूप से कार्य करें। जब प्रशासन निष्पक्ष और सहानुभूतिशील होता है, तो वह समाज का उद्धारक बन जाता है।

21वीं सदी का एक प्रश्न हमारे समक्ष आपातकाल की तरह खड़ा हो रहा है कि आखिर हमारा विभाजित विश्व कैसे एक हो और कैसे उसका कल्याण हो ? तीन दशक पूर्व शीत युद्ध की समाप्ति के दौरान भी हमारा विश्व इतना चरमराया हुआ नहीं था,जितना कि वह आज है। इसका कारण शायद अमेरिका-चीन के बीच चल रही तनातनी से उत्पन्न आशंकाएं हैं।

इसके अलावा जनसंख्या के मामले में विश्व के पहले और दूसरे नंबर के देश चीन और भारत के बीच का सीमा-विवाद भी चिंता पैदा कर रहा है। विश्व की दो परमाणु शक्तियां, भारत और पाकिस्तान, लगातार एक दूसरे से भिड़ती रहती हैं। पश्चिम एशिया ने सीरिया, ईराक, लीबिया और यमन में गृहयुद्ध देखे हैं। ब्राजील के लोभी और बेपरवाह शासकों ने अमेज़न के वनों में आग लगाकर अलग तरह की अशांति फैला रखी है। ज्ञातव्य हो कि ये वन विश्व में कार्बन-डाइ ऑक्साइड का सबसे अधिक अवशोषण करने की क्षमता रखते हैं। परमाणु निरस्त्रीकरण भी संकट के दौर में है। अमेरिका और रशिया के बीच रह गया एकमात्र परमाणु अस्त्र नियंत्रण समझौता फरवरी 2021 में खत्म होने वाला है।

इन सबके अलावा भी सूची बहुत लंबी हो सकती है। विश्व को अभी सबसे अधिक चिंता कोविड-19 के टीके को लेकर है। इसके अलावा समग्र, समान और धारणीय वैश्विक अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होने की चुनौती है। पृथ्वी की रक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन हेतु समयबद्ध कार्यक्रम तय करना तथा महासागरों को सैन्य छावनी बनने से रोकना जैसे कठिन कार्य बाकी है। अगर हम इन पर आगे बढ़ने का विचार भी करते हैं, तो दो प्रश्न सम्मुख दिखाई देते हैं।

(1) क्या हमारे पास वैश्विक सोच रखने वाला कोई नेता है; एक ऐसा नेता, जो केवल अपने राष्ट्र को महान बनाने की सोच तक सीमित न रहे।

(2) क्या विभिन्न देशों की सरकारें अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए प्रतिबद्ध हैं ? विश्व के सभी देश ऐसी समस्याओं से ग्रसित हैं, जिनके लिए सहयोग आवश्यक है।

एक प्रभावी वैश्विक प्रशासन के अभाव में आज पूरा विश्व विभाजन, विकृति और यहाँ तक कि युद्धों के कगार पर आ खड़ा हुआ है। इससे निपटने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं।

  • विश्व को एकजुट करने और सुरक्षित बनाने के लिए देशों में निष्पक्ष और न्यायप्रिय प्रशासन की जितनी आवश्यकता है, उतनी ही वैश्विक स्तर पर भी है। अतः एक प्रजातांत्रिक वैश्विक सरकार के विचार को वैश्विक नीति का केंद्र बनाया जाना चाहिए।
  • राष्ट्र और उनके राज्य बने रहें, लेकिन अनन्य और सर्वोपरि राष्ट्रीय संप्रभुता का प्रतिमान मानव एकता और बंधुत्व के लिए सबसे बड़ा अवरोधक बन गया है। जब राष्ट्रीय संप्रभुता को ऐतिहासिक रूप से जुड़े समाजों और क्षेत्रों में शांति, कल्याण और विकास की आड में आमंत्रित किया जाता है, तो यह मानवता के लिए खतरा बन जाता है। इसलिए वैश्वीकरण के युग में हमें साझा संप्रभुता के गुणों को अपनाना चाहिए। इसमें कनेक्टिविटी ( भौतिक, डिजीटल,सांस्कृतिक और मानव से मानव ) क्षेत्रीयता के बल पर बाजी मार लेती है। इस प्रयास से वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए विश्वसनीय ढांचे तैयार करना संभव हो सकेगा।
  • वैश्विक प्रशासन में अंतरराष्ट्रीय विवादों के सैन्यीकरण को दण्डनीय बनाया जाना चाहिए। इसे इस आधार पर लागू किया जा सकता है कि क्या राष्ट्रों ने अपने अधिकार क्षेत्र में समुदायों और व्यक्तियों द्वारा की गई हिंसा को दण्डित नहीं किया है ? अगर किया है, तो क्या इससे अगला कदम नहीं बढ़ाया जाना चाहिए, जो कानून शासित और विश्वास आधारित सह-अस्तित्व रखता हो?
  • ऐसा करने के लिए सभी राष्ट्रों, विशेषरूप से बड़े और शक्तिशाली राष्ट्रों को सामूहिक विनाश की क्षमता रखने वाले हथियारों को नष्ट करने और अपने सैन्य खर्चे कम करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
  • संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में कई खामियां हैं, और वह राष्ट्रों के बीच अपना प्रभुत्व बनाए रखने की क्षमता नहीं रखता। इसे वैश्विक सरकारी निकाय बनाए रखने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए। एक प्रमुख सुधार के रूप में सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता को समाप्त किया जाना चाहिए। युद्ध भडकाने वाले देशों और अपने आसपास के राष्ट्रों से विवाद न सुलझा पाने वाले देशों को यू एन एस सी की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए।
  • वैश्विक प्रशासन को व्यापक और समावेशी बनाया जाना चाहिए। हमारे परस्पर संयोजक और अन्योन्याश्रित विश्व में तकनीक ने विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के बीच सार्थक बातचीत और सहयोग को संभव बना दिया है। विश्व को बेहतर स्थान बनाने और व्यावसायिक मानसिकता वाले राजनीतिज्ञों के एकाधिकार की समाप्ति के लिए विवेकी और समझदार वर्ग की सहभागिता बहुत जरूरी है।

अधिकांश सरकारों और राजनीतिक संस्थाओं से इस विचार या वैश्विक शासन की अनिवार्यता को गले लगाने की अपेक्षा करना व्यर्थ है, क्योंकि वे क्षेत्रीय हितों और विचार के पुराने पैटर्न के कैदी बन गए हैं।

इतिहास गवाह है कि परिवर्तन की क्रांति करने वाले ‘एकला चलो रे’ में विश्वास करने वाले ही रहे हैं। और जब यह क्रांति एक से बहुतों तक विस्तार ले लेती है, तो इतिहास में मोड़ आ जाता है। अब समय आ गया है, जब परिवर्तन की मशाल जलाई जाए।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित सुधेंद्र कुलकर्णी के लेख पर आधारित। 23 नवम्बर, 2020

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