हिमालयी क्षेत्रों को कैसे बचाया जाए?

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16 Nov 2023
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हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम जैसे पहाड़ी राज्यों में हुई तबाही के बाद से ही इन क्षेत्रों की ‘वहन-क्षमता’ पर बहस फिर से तेज हो गई है।

किसी क्षेत्र की वहन क्षमता क्या होती है?

तकनीकी शब्दों में, किसी क्षेत्र की वहन क्षमता विशिष्ट अवधि में उस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र या प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किए बिना, जनसंख्या के अधिकतम आकार को वहन करने की क्षमता होती है। दीर्घकालीन धारणीयता को बनाए रखने के लिए मानव गतिविधियों और प्राकृतिक पारिस्थितिकी के संरक्षण के बीच संतुलन का प्रबंधन और समझ, दोनों ही कठिन होते हैं।

‘वहन-क्षमता’ से संबंधित सरकारी हलफनामा –

  • सरकार का कहना है कि जी. बी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान को सभी 13 हिमालयी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की वहन-क्षमता का आकलन करने के लिए अग्रणी बनाया गया है।
  • इसको तकनीकी सहायता देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, भोपाल, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रूडकी तथा राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान नागपुर जैसे अन्य कई संस्थान नामांकित किए जा सकते हैं।
  • इसमें राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के प्रतिनिधि, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय भू-जल बोर्ड के सदस्य सचिव या नामांकित व्यक्ति भी शामिल किए जा सकते हैं।
  • न्यायालय ने सरकार से अनुरोध किया है कि वे उक्त राज्यों के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करें।

सरकारी प्रयास और उनकी विफलता –

  • केंद्र सरकार ने हिमालयी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए कुछ पहल की थी। इनमें 2010 का भारतीय हिमालय को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन, द हिमालयाज़ क्लाइमेट एंडेप्टेशन प्रोग्राम, सिक्योर हिमालया प्रोजेक्ट और वहन क्षमता पर हालिया दिशानिर्देश आदि हैं।
  • 2023 में ही पर्यावरण मंत्रालय ने सभी राज्यों से कहा है कि अगर वहन-क्षमता से संबंधित कोई अध्ययन नहीं किया गया है, तो वे जल्द-से-जल्द एक्शन प्लान लेकर आएं। अभी तक राज्यों ने कोई तत्परता नहीं दिखाई है।
  • इस विफलता का पहला कारण यह है कि मंत्रालय उन्हीं को वहन क्षमता पता करने से संबंधित जिम्मेदारी सौंप रहा है, जो इन क्षेत्रों के विनाश के लिए जिम्मेदार हैं।
  • दूसरा कारण यह है कि समस्या का जोर केवल वहन-क्षमता पर न होकर, हिमालयी राज्यों की स्थायी जनसंख्या पर होना चाहिए। वर्तमान पूछताछ को भी विभिन्न हिमालयी राज्यों की स्थायी जनसंख्या को वहन करने की क्षमता पर अधिक केंद्रित होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।

इन विफलताओं को दूर करने का उपाय यही है कि विशेषज्ञ समिति को हिमालयी राज्य विशेष की जनसंख्या के सामाजिक पहलू पर फोकस रखने को कहा जाए। यह समिति विभिन्न पंचायतों और शहरी निकायों को शामिल करे। उन्हें क्षेत्र की जनसंख्या की धारणीयता से संबंधित सिफारिशें प्रस्तुत करने को कहे। हिमालयी क्षेत्र को बचाने का यही सबसे अच्छा तरीका हो सकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित टिकेन्द्र सिंह पंवार के लेख पर आधारित। 23 अक्टूबर, 2023