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ग्रीन हाइड्रोजन नीति
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पिछले दिनों राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के शुभारंभ की घोषणा की गई है। यह नीति, निम्न कार्बन नेट जीरो इकॉनॉमी के लिए भारत सरकार की प्रतिबद्धता की दिशा में महत्वपूर्ण है।
कुछ अन्य बिंदु –
- इस नीति से घरेलू उद्योगों एवं निर्यात के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में बढ़त प्राप्त की जा सकती है।
- यह नीति ग्रीन हाइड्रोजन पर एक पूर्ण स्पेक्ट्रम नीति विकसित करने का आधार प्रदान करती है। इससे मूल्य श्रृंखला में अधिक स्पष्टता आएगी। यह ग्रीन हाइड्रोजन के उस खंड को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है, जिसे वैश्विक स्तर पर नेट-जीरो लक्ष्य को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
- यह नीति ग्रीन हाइड्रोजन से मिलने वाले आर्थिक लाभ के द्वार खोल सकेगी। नीति, ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को इस प्रकार से सक्षम बना सकेगी कि उपयोगकर्ता उद्योगों को तेजी से आगे बढ़ने की अनुमति मिल सके।
- नीति में ग्रीन हाइड्रोजन को पाइपलाइन के द्वारा अणुओं के रूप में संचारित करने के बजाय, ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) इकाइयों को उपभोग करने वाली इकाइयों के नजदीक रखा जाएगा। इसमें 25 वर्षों के लिए संचरण शुल्क और अक्षय ऊर्जा के लिए बैंकिंग में छूट मिल सकेगी।
चुनौतियां भी हैं –
जीवाश्म ईंधन और उच्च कार्बन हाइड्रोजन विकल्पों के बदले ग्रीन हाइड्रोजन को अपनाए जाने के लिए इसकी लागत को कम करना होगा।
दूसरे, इस नीति में अभी तक उपभोक्ताओं की मांग जानने पर कोई चर्चा नहीं की गई है। इससे ग्रीन हाइड्रोजन की अप्रयुक्त खेप को लेकर समस्या हो सकती है। साथ ही नई तकनीक के विकास और सुरक्षा जैसे अन्य प्रमुख मामलों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
अगर सरकार अपने इस मिशन की सफलता चाहती है, तो नीति में मूल्य श्रृंखला पर काम करने की ओर पूरा ध्यान लगाना चाहिए। उम्मीद की जा सकती है कि सरकार इस ओर कदम बढ़ाएगी।
यह लेख ‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित है। 19 फरवरी, 2022