ग्लोबल साउथ के विचारों को आगे बढ़ाता भारत
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भारत में होने वाला जी-20 समूह देशों का सम्मेलन न केवल भारत बल्कि समस्त दक्षिणी देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी तर्ज पर सरकार ने हाल ही में दक्षिणी विकासशील देशों के लिए ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ सम्मेलन का आयोजन किया था।
इस आयोजन से जुड़े मुख्य बिंदु –
- भारत सरकार अब वैश्विक सम्मेलन में अध्यक्षता के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के पी-5 और जी-7 समूह के विकसित देशों के सीधे संपर्क में है। ग्लोबल साउथ समिट के माध्यम से वह दुनिया का ध्यान इस बात पर केंद्रित करना चाहती है कि कैसे विकासशील देश, वैश्विक असमानताओं से प्रभावित हो रहे हैं।
- इस सम्मेलन में जी-77 में शामिल 134 देशों में से 125 देश, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के विखंडन, यूक्रेन युद्ध के कारण उत्पन्न अनाज, तेल, गैस और उर्वरक निर्यात की कमी और आतंकवाद जैसे प्रमुख मुद्दों पर एकमत रहे हैं।
- प्रधानमंत्री मोदी ने इस सम्मेलन में ‘फर्स्ट वर्ल्ड’ कहे जाने वाले देशों के पारिस्थितिकी को धता बताकर किए जाने वाले विकास कार्यों के विरोध में मानव-केंद्रित’ वैश्वीकरण पर जोर दिया। दूसरे, विश्व के दक्षिण देशों के कुशल लोगों की कार्य गतिशीलता को सुनिश्चित करने के लिए आप्रवसान की सुविधा की मांग की। तीसरे, लचीली नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुंच का आश्वासन देने की बात कही।
- शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान और अफगानिस्तान को शामिल नहीं किया गया था।
- सम्मेलन में म्यांमार को शामिल किया गया था। हालांकि इसके जुंटा शासन को मान्यता नहीं दी गई है, लेकिन भारत इसके साथ अच्छे संबंध रखना चाहता है।
ऐसा माना जा रहा है कि इस सम्मेलन से दक्षिण देशों में वैश्विक मुद्दों की सामूहिक समझ से और अधिक प्रगति होगी। इस समूह ने कोई साझा या संयुक्त बयान जारी नहीं किया है। लेकिन भारत में होने वाले आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत के माध्यम से ही वैश्विक दक्षिण की आवाज के रूप में इसे सुना जा सकेगा।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 जनवरी 2023
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