गिद्ध-संरक्षण कार्यक्रम में तेजी लाई जानी चाहिए
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हमारे पर्यावरण में गिद्धों का बहुत महत्व है। इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी कहा जाता है। मृत पशुओं के अवशेषों को जितनी सफाई से ये निपटा सकते हैं, उतना कोई अन्य पशु-पक्षी नहीं कर सकता है।
इनसे जुड़े कुछ बिंदु –
- 1993 से पहले गिद्धों की संख्या हमारे यहाँ 4 करोड़ के लगभग थी। ये अब विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- इस विलुप्ति का कारण पशुओं को दी जाने वाली डायक्लोफेनेक और नीमूसूलाइड नामक दर्द निवारक दवाएं हैं। 2006 में डाइक्लोफेनेक और हाल ही में नीमूसूलाइड को प्रतिबंधित किया गया है।
- इन कदमों से गिद्धों की आबादी को बढ़ाने में बहुत कम मदद मिली है, क्योंकि प्रतिबंधों का प्रवर्तन ढीला है। दूसरे, गिद्ध बहुत धीरे-धीरे प्रजनन करते हैं, जिससे उनकी संख्या को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती बन गई है।
- गिद्धों की घटती संख्या को मानव मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी का अप्रत्यक्ष कारण भी माना जाता है। जंगली कुत्ते और चूहे खराब सफाईकर्मी हैं। ये मनुष्यों में बीमारी भी फैलाते हैं।
- समाधान के रूप में गिद्धों के लिए जहर का काम करने वाली दर्दनिवारक दवाओं पर निगरानी रखी जाए। दूसरे, पशुओं पर डायक्लोफेनेक के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल को रोकने के लिए शीशी के आकार को 3 मिली. तक सीमित किया जाना चाहिए। तीसरे, गिद्धों के लिए सुरक्षित क्षेत्रों के माध्यम से गिद्ध प्रजनन कार्यक्रमों को बढ़ाया दिया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 4 जनवरी, 2025
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