जर्मनी का 4 दिवसीय कार्य सप्ताह का प्रयोग
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जर्मनी ने सप्ताह में केवल चार कार्य दिवस जैसी प्रयोगात्मक पहल की है। अन्य देशों में भी इस प्रकार के प्रयोग किए गए हैं, जिसके मिले जुले परिणाम रहे हैं। जर्मनी के इस प्रयोग से मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव पर कुछ बिंदु –
- यह वेतन मुद्रास्फीति के लिए सुरक्षा वाल्व के रूप में काम कर सकता है।
- अंशकालिक श्रमिकों के लिए काम के अधिक घंटे दे सकता है।
- नियमित श्रमिकों के लिए बेहतर कार्य-जीवन संतुलन रख सकता है। इससे उत्पादकता बढ़ने की संभावना होती है।
- घटती प्रजनन क्षमता और अपर्याप्त आप्रवसान के चलते जर्मनी की वृद्ध होती जनसंख्या का स्थान लेने वाले श्रमिकों की बहुत कमी है। इस प्रयोग से वर्तमान श्रमिकों या कार्यबल को ही लंबे समय तक चलाने की आशा की जा रही है।
मिश्रित प्रतिक्रिया –
- जर्मनी के वित्त मंत्री का मानना है कि इस प्रयोग से जर्मनी की आर्थिक प्रगति और समृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- अमेरिका और कनाडा में पहले हुए ऐसे प्रयोगों के सकारात्मक परिणाम मिले हैं। वहाँ के कामकाजी वर्ग के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार देखने को मिला था।
- ब्रिटेन में भी भागीदार बनी 61 कंपनियों को आर्थिक लाभ हुआ था। इस प्रयोग से बीमारी के कारण छुट्टी लेने में 65% की कमी आई थी।
- जापान ने भी अपनी कंपरियों को काम के घंटों को कम किए बिना कार्य दिवस कम करने को प्रोत्साहित किया है। उसका मानना है कि ऐसा होने पर लोग प्रजनन और व्यय के लिए अधिक समय दे सकेंगे।
अधिकांश लोगों का यह मानना है कि इस प्रयोग से प्रति घंटे उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है, लेकिन यह काम के कम घंटों की फिर भी भरपाई नहीं कर सकती है। श्रमिकों की कमी झेल रही जर्मनी जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए आसान आप्रवासन और विदेशों में निवेश अन्य विकल्पों में से एक है। आईटी में अधिक निवेश भी उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक विकल्प हो सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 01 फरवरी, 2024
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