गैर सरकारी संगठनों का गला घोंटता विधेयक
Date:16-10-20 To Download Click Here.
हाल ही में संसद ने विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक (एफ सी आर ए) 2020 पारित किया है। इसे बिना किसी विशेष विचार-विमर्श के पारित कर दिया गया है। इस विधेयक को लाने के पीछे एन. जी. ओ. के. क्षेत्र को अधिक जवाबदेही बनाना बताया जा रहा है। परंतु इस क्षेत्र में संशोधन पूर्व के प्रावधानों को देखने पर यह पहले से ही नियमन प्रावधानों से भरा दिखाई पड़ता है।
- एफ सी आर ए संगठन को विदेशी स्रोत से धन प्राप्त करने के लिए एक एफ सी आर ए नंबर या पूर्व अनुमति की आवश्यकता थी। इस विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज एक निश्चित खाते में धन आ सकता था। अंशदान का विवरण दिया जाना आवश्यक था। इसे मानव संसाधन मंत्रालय को भी भेजा जाता था।
विधेयक को लाने का दूसरा कारण इन संगठनों का धर्म परिवर्तन के कार्यों में लिप्त होना बताया जा रहा है। लेकिन विदेशी दान किसी चर्च या अन्य धार्मिक संस्था से नहीं आते हैं। इनका शुद्ध मंतव्य भारत में शिक्षा, स्वास्थ और आजीविका की स्थिति को सुधारना होता है।
वर्तमान संशोधनों पर एक नजर –
विधेयक में चार मुख्य परिवर्तन किए गए हैं।
- ऐसे किसी भी एफ सी आर ए संगठन को प्रतिबंधित कर दिया गया है, जो अन्य एफ सी आर ए संगठनों को धन वितरण करके धन अर्जित करते हैं। ज्ञातव्य हो कि कुछ बड़े संगठनों को दानदाताओं से धन प्राप्त करने में व्यावसायिक कुशलता प्राप्त है। इस आधार पर वे दान प्राप्त करके समुदायों के साथ प्रत्यक्ष रूप से काम करने वाले छोटे संगठनों को धन वितरण करते रहे हैं।
- प्रशासनिक व्यय को 20% तक सीमित रखने को कहा गया है। इसके कारण गैर सरकारी संगठनों द्वारा की जाने वाली खोज, नेटवर्किंग, मॉडल बिल्डिंग और सहयोगी संगठनों को साथ लेने आदि पर गहरा प्रभाव पडेगा। सरकारी नीतियों की जमीनी सच्चाई पर काम करने वाले संगठन भी बुरी तरह से प्रभावित होंगे।
- प्रत्येक एफ सी आर ए संगठन को अपना एकमात्र बैंक खाता दिल्ली के स्टेट बैंक इंडिया में रखना अनिवार्य कर दिया गया है।
- संगठनों की जांच करने वाले अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों की शक्तियों को बहुत बढ़ा दिया गया है। इस प्रकार के मनमाने अधिकार का दुरूपयोग करना आसान हो जाएगा।
संक्षेप में, एफ सी आर ए संशोधन विधेयक, 2020 ने उदारवादी लोकतांत्रिक ढांचे के आवरण में सत्तावादी शासन की गहरी बेचैनी को मूर्त रूप दिया है। यह एक ऐसा ढांचा है, जो अपनी कमजोर आवाज में लगातार विपक्ष की भूमिका निभाता रहता है। सफल सरकारें जन-समाज की इस भूमिका से बेहद सावधान रही हैं। इंदिरा गांधी के समय में एफ सी आर ए की शुरूआती फ्रेमिंग और 2011 में मनमोहन सरकार द्वारा किए गए संशोधनों में यह स्पष्ट परिलक्षित होता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमिताभ बेहर के लेख पर आधारित। 2 अक्टूबर, 2020