फार्मा क्षेत्र में नए कानून का प्रस्ताव
Date:23-09-21 To Download Click Here.
कोविड महामारी के साथ ही राष्ट्र अपने घरेलू फार्मा क्षेत्र को बेहतर बनाने में लगे हैं। एक परिपक्व फार्मा पारिस्थितिकी तंत्र का मतलब आदर्श नुस्खे बनाने से है। भारत में संपूर्ण फार्मा जगत को मजबूत करने के उद्देश्य से एक नया दवा कानून लाया जा रहा है। इसका लक्ष्य विनिर्माण-नियमों, गुणवत्ता-नियंत्रण, तथा शोध एवं अनुसंधान मानदंडों को सुव्यवस्थित करके आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हे तैयार करना भी है।
कुछ मुख्य बातें –
- सरकार ने दवा एवं प्रसाधन क्षेत्र में विनिर्माण, आयात, वितरण एवं बिक्री को नियंत्रित करने वाले ड्रग्स एण्ड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 में परिवर्तन करने का निर्णय लिया है।
- इस कानून और समय-समय पर इसमें किए गए अनेक संशोधनों ने भारतीय फार्मा को उत्पादन मात्रा के मामले में विश्व में तीसरे स्थान व कार्यबल के मामले में द्वितीय स्थान पर स्थापित कर दिया है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 ने दशक के अंत तक इस उद्योग के मौजूदा बाजार में तीन गुना वृद्धि का अनुमान लगाया है।
- वर्तमान कानून के अंतर्गत सी डी एस सी ओ (केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन) और राज्यों के बीच दोहरा विनियमन काम करता है। इससे इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार की आशंका बनी रहती है।
- दवा कंपनियों और निर्माण इकाइयों से युक्त फार्मा क्षेत्र अत्यंत विशाल है। इसमें असमान मानकों को लागू करना तथा घटिया दवाओं और उपकरणों के संचालन को रोकने के लिए एक समान नियामकों की जरूरत है। इस मामले में रैनबैक्सी में हुए भ्रष्टाचार को याद रखा जाना चाहिए।
- फिलहाल, ऑनलाइन दवा बिक्री पर न्यायिक विरोधाभासों व नियामकों की अस्थिरता के बाद भी एक शांति सी बनी हुई है। विदेशी निवेशकों को फिर भी वैधानिक स्पष्टता की आवश्यकता होगी।
- स्थानीय स्तर पर बिना वैध दवा विक्रेता के चलने वाली दवाई दुकानों पर भी नकेल कसने की जरूरत है।
- कानून के माध्यम से उपभोक्ता-हितों को भी अच्छी तरह से पूरा किया जाना चाहिए।
- ओवर-द-काउंटर एंटीबायोटिक और सूची एच की दवाओं की बिक्री के मुद्दे को भी देखा जाना चाहिए।
नए कानून का मसौदा तैयार करने वाले पैनल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस हेतु उद्योग जगत के कुछ प्रतिनिधियों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों से व्यापक परामर्श लिया जाए। इस कानून की सफलता से सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ी राहत की उम्मीद की जा सकती है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 सितंबर, 2021