ईडब्ल्यूएस की पात्रता को ठीक से परिभाषित करना होगा

Afeias
21 Oct 2022
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देश में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए भी आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लेकिन समस्या यह है कि पात्रता को ठीक से परिभाषित नही किया गया है। इस हेतु मुख्य न्यायाधीश 103वें संविधान संशोधन की वैधता की जांच कर रहे हैं। यह संशोधन अन्य पिछड़े वर्गों या ओबीसी, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को 10% आरक्षण प्रदान करता है। जांच के लिए बनी पीठ ने सुनावाई के लिए तीन मुद्दों को आधार बनाया है –

  1. क्या संशोधन ने सरकार को विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है?
  1. क्या निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के संबंध में भी ऐसा ही प्रावधान देता है?
  1. क्या ईडब्ल्यूएस को दिए आरक्षण वर्ग में ओबीसी/एससी/एसटी समुदायों को आरक्षण के दायरे से बाहर करना, बुनियादी ढांचे पर चोट करता है?

ये कुछ वैध प्रश्न हैं। और यह तर्क दिया जा सकता है कि 2019 में किया गया यह संशोधन उचित मानदंडों को अपना, बिना जल्दबाजी में किया गया है। उदाहरण स्वरूप, परिवार की वार्षिक आय-सीमा का निर्धारण विवादास्पद है। क्यों –

  1. यदि उपलब्ध उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण एनएसओ रिपोर्ट, 2011-12 पर भरोसा करें, तो आबादी का एक बड़ा हिस्सा “8 लाख रुपये से कमश् की ईडब्ल्यूएस श्रेणी में आरक्षण के लिए पात्र होगा। इस प्रकार यह गरीबों के पात्र वर्ग तक सीमित नहीं रह जाएगा। सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने इस सीमा को उचित बताया था। लेकिन समिति यह नहीं बता सकी कि ओबीसी क्रीमी लेयर के लिए आय मानदंड को अधिक कठोर क्यों रखा गया है।
  1. साथ ही, 8 लाख रुपये का आंकडा, आबादी में ईडब्ल्यूएस व्यक्तियों की अनुमानित संख्या से संबंधित आय के किसी भी डेटा के अनुरूप नहीं था।
  1. यह भी तर्क है कि पिछड़ा वर्ग और एससी/एसटी के उम्मीदवारों को ईडब्ल्यूएस से बाहर करने से, उन्हें अब सामान्य वर्ग में 10% की सीमा तक प्रतिस्पर्धा करने के अवसर से वंचित कर दिया गया है। इससे यह आरक्षण अगड़ी जातियों तक सीमित हो जाता है। इस प्रकार कुछ समुदाय के लोगों को (जिनको संविधान में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा कहा गया है), इस लाभ से बाहर करना कानून को भेदभावपूर्ण बनाता है।

अतः यदि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की पहचान के लिए आय-मानदंड को आधार बनाना है, तो इसे इस प्रकार से डिजाइन किया जाए कि यह समाज के सभी वर्गों और जाति के लोगों को इस श्रेणी के तहत आरक्षण की पात्रता दे सके।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 सितंबर, 2022