
एकाधिक नागरिकता को मंजूरी देना प्रगतिशील कदम होगा
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– कई देशों ने नागरिकता के अपने नियमों में ढील दे रखी है। जब भारतीय युवा जनसंख्या को वहाँ की नागरिकता मिल जाती है, तो वे भारतीय नागरिकता छोड़ देने को मजबूर हो जाते हैं। इनमें मुख्यतः सेवा और इंजीनियरिंग जैसे सॉफ्ट क्षेत्रों में काम करने वाले हैं।
– इससे भारत के सॉफ्ट पावर का विस्तार तो हुआ है, लेकिन अपने देश से कटे प्रवासी भारतीयों का मूल देश से जुड़ाव कमजोर हो जाता है।
– नौकरी चाहने वालों के अलावा भी संपन्न भारतीय तेजी से विदेश जा रहे हैं। गंतव्य देशों ने निवेश के माध्यम से आप्रवासन को आसान बना दिया है।
– भारत ने ओवरसीज सिटीजनशिप के माध्यम से भारतीय मूल के लोगों और उनके जीवनसाथी को स्थायी निवास और काम करने का प्रावधान किया है। इसके चलते भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था से और गहराई से जुड़ गया है। भारतीय कार्यबल, संस्कृति और मूल्य अधिक मोबाइल हो गए हैं।
– एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने की राह पर चल रहे भारत जैसे उदार लोकतंत्र को न केवल अपने नागरिकों को कई राष्ट्रीय पहचानों की अनुमति देनी चाहिए, बल्कि उन्हें सक्रिय रूप से प्रोत्साहित भी करना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 सितंबर, 2024