दो महत्वपूर्ण मुद्दे
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व्हिसलब्लोइंग से जुड़े कानून की जरूरत
भारत ने 2014 में मुखबिर संरक्षण अधिनियम पारित किया था। विडंबना यह है कि इसे आज तक अधिसूचित नहीं किया गया है। इस अधिनियम के दायरे में सशस्त्र बल और निजी क्षेत्र नहीं आते हैं। यह अमेरिकी फॉल्स क्लेम एक्ट की तरह व्हिसल ब्लोइंग के लिए कोई धनराशि नहीं देता है। कानूनी ढांचे के न होने से भारत में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले बढ़ गए हैं। यह लोकतंत्र की मजबूती का एक अस्त्र है, और इस पर जल्द ही कोई कानून आना चाहिए।
पेड़ काटने से जुड़े कानून की उड़ती धज्जियां
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया को एक निर्देश दिया है। यह अरावली के दक्षिणी दिल्ली रिज सेक्टर में 11 कि.मी. लंबी सड़क बनाने के लिए काटे गए पेड़ों की जांच से संबंधित है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा में अधिकारी नियमित रूप से उच्चतम न्यायालय के आदेशों को दरकिनार करते हैं। ये लोग अरावली और दिल्ली रिज को समतल करने के लिए भूमाफिया और अवैध खनन कंपनियों के साथ मिलकर काम करते हैं।
इस मामले में शहरी विकास योजनाकार डीडीए को जानबूझकर पर्यावरण क्षरण के लिए कठघरे में खड़ा किया जा चुका है। लेकिन लूट रुक नहीं रही है। जंगलों को बचाया नहीं जा रहा है।
हर काटे हुए पेड़ के बदले न्यायालय ने डीडीए को 100 पेड़ लगाने का आदेश दिया है। लेकिन यह जंगलों को व्यापार मॉडल में बदल रहा है।
वास्तविकता यह है कि अधिकारी और खनन माफिया मिलकर उच्चतम न्यायालय और कानूनों की लगातार धज्जियां उड़ा रहे हैं। इन पर किसी का नियंत्रण नहीं है।
समाचार पत्रों पर आधारित। 18 मई, 2024