डिजीटल युग की समस्याएं और समाधान

Afeias
05 Mar 2021
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Date:05-03-21

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ट्विटर जैसी अमेरिकी टेक कंपनियों साथ भारत के विवाद का यह कोई नया मामला नहीं है। भारत ही क्या , अमेरिका के भी हर क्षेत्र में ये कंपनियां अपनी पहुंच बना रही हैं। अमेरिकी या अन्य देशों में होने वाले आम चुनावों में दखल बनाने के साथ ही ये घरेलू, अंतरराष्ट्रीय एवं आर्थिक क्षेत्र के अलावा व्यक्तिगत अधिकारों, मिथक सूचनाओं, एवं डिजीटल प्रशासन आदि को भी प्रभावित कर रही है।

स्वतंत्र विश्व में कोई भी देश आज डिजीटल मोक्ष के लिए किसी अन्य को उपदेश नहीं दे सकता है। लोकतांत्रिक शक्तियों को एक-दूसरे से परामर्श करने और डिजिटल दुनिया के प्रबंधन के लिए नए मानदंडों को विकसित करने में सहयोग करने की आवश्यकता है। इस हेतु तीन आधारों पर काम करने की जरूरत है- श्रम अधिकार, कर और राजनीति।

  1. तकनीकी दिग्गजों ने बहुत सारी सम्पत्तियाँ अर्जित की हैं। इनमें से कुछ ने तेजी से श्रम का दोहन किया है। इन सबमें अमेजन ने श्रम यूनियनों के समस्त प्रयासों को कुचलने में सफलता प्राप्त की है। कैलीफोर्निया में उबेर और लिफ्ट जैसी कंपनियां, कर्मचारियों को ‘अनुबंध श्रमिकों’ में बदलने का भरपूर जोर लगा रही हैं। इसके माध्यम से उन्हें सुविधाओं से वंचित किया जा सकेगा।
  1. सभी डिजिटल कंपनियाँ कर चोरी में आगे रही हैं। धीरे-धीरे अमेरिका सहित भारत जैसे कई देश, इन कंपनियां से अपने हिस्से का भुगतान प्राप्त करने के रास्ते तैयार कर रहे हैं।
  1. यदि राजनीतिक स्तर पर देखें, तो ये कंपनियां मौकापरस्ती में विश्वास रखती हैं। ट्रंप-प्रशासन के कमजोर होते ही ये उसके विरूद्ध हो गई थीं। लेकिन हर बार उन्हें ऐसी सफलता नहीं मिल सकती। चुनावों में ये भारी-भरकम रकम देकर, सत्ताधारी पक्ष में अपनी जगह बनाने में माहिर हैं। फिर भी भारत में ट्विटर की रणनीति काम नहीं आई। भारत ने जहाँ लाल किले वाली घटना को अमेरिकी व्हाइट हाउस वाली घटना से भिन्न रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया, वहीं जर्मनी की चांसलर ने ट्रंप पर सोशल मीडिया के रवैये को संदिग्ध और समस्यामूलक बताया है।

ऐसा माना जा रहा है कि यूरोपियन यूनियन का डिजिटल सर्विस एक्ट, इस समस्या का समाधान बन सकता है। अगर ऐसा होता है, तो अब भारत जैसे लोकतंत्रों को तकनीकी रूपांतरण के इस युग में स्वतंत्रता की रक्षा के लिए, अपने कानूनों को आधुनिक बनाना होगा। इस राजनीतिक युद्ध में ट्विटर तो एक निमित्त मात्र है।

‘द इंडियन एक्सपे्रस’ में प्रकाशित सी. राजा मोहन के लेख पर आधारित। 16 फरवरी, 2021