दलबदल विरोधी कानून का पुनरावलोकन हो
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कुछ समय पहले महाराष्ट्र के सत्ताधारी दल शिवसेना में हुए विद्रोह ने संविधान की दसवीं अनुसूची में शामिल दलबदल विरोधी कानून के होने की सार्थकता पर एक बार फिर ध्यान खींचा है। 1985 में सम्मिलित और 2003 में संशोधित संविधान की दसवीं अनुसूची का दलबदल विरोधी कानून विधायकों की खरीद-फरोख्त को रोकने में व्यर्थ सिद्ध हुआ है। बल्कि इसके कारण विधायकों का मूल्य कुछ अधिक बढ़ गया है।
कानून का उद्देश्य क्या था ?
- यह कानून राजनीतिक दल से संबंधित एक विधायक को अयोग्य ठहराए जाने के लिए बनाया गया था। इस अयोग्यता के लिए कुछ शर्तें तय की गई थीं –
- यदि विधायक ने स्वेच्छा से अपनी पार्टी की राजनीतिक सदस्यता को छोड़ दिया हो।
- यदि उसने अपनी पार्टी के व्हिप के निर्देशों का उल्लंघन किया हो।
दसवीं अनुसूची में दो अपवाद –
- किसी मूल राजनीतिक दल में विभाजन हो जाने पर विधायकों के एक समूह का गठन हुआ हो, और इस समूह में पार्टी के एक तिहाई विधायक शामिल हों, तो उन्हें अयोग्यता से छूट मिल जाती है। इस प्रावधान के बार-बार दुरूपयोग के कारण 2003 के संशोधन में इसे हटा दिया गया था।
- दूसरा अपवाद ‘विलय’ था। इसे तब लागू किया जा सकता है, जब एक विधायक के मूल राजनीतिक दल का किसी अन्य पार्टी में विलय हो जाता है, और उसके कम से कम दो तिहाई विधायक इस तरह के विलय के लिए सहमत होते हैं। ऐसी स्थिति दर्शाने पर विधायकों के समूह को अयोग्यता से छूट दी जा सकती है। ‘विलय’ की व्याख्या अनुसूची के पैराग्राफ चार में निहित है।
कानून को लेकर वाद-प्रतिवाद चलते रहे हैं। सबसे अच्छा तो यह हो सकता है कि कानून को बनाए रखते हुए उसमें आ गई गंदगी को साफ किया जाना चाहिए।
- कानून के प्रावधान निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा नहीं देते हैं, और बुरी तरह से तैयार किए गए हैं।
- स्पीकर और गवर्नर तटस्थ अंपायर नहीं रह गए हैं।
- अदालतों ने कानून की अलग-अलग व्याख्याओं के साथ कमजोरियों को बढ़ाया है।
महाराष्ट्र में विद्रोही गुट ने अयोग्यता से बचने के लिए दो-तिहाई सीमा को पार कर लिया था। फिर भी दो-तिहाई से कम विधायकों को अयोग्यता का नोटिस भेजा गया था। यह विद्रोही दल की संख्या को कम दिखाकर एक ‘वैध’ विद्रोह को तोड़ने का स्पष्ट प्रयास था। इसी प्रकार, अन्य राज्यों के अलग-अलग ऐसे उदाहरण हैं, जो कानून को धता बताने का प्रयास करते हैं।
एक अवलोकन –
दलबदल विरोध कानून चूँकि राजनीतिक वर्ग से संबंधित है, इसलिए चालें गंभीर हैं। कानून भले ही अपेक्षानुरूप खरा न उतर रहा हो, परंतु यह लोकतंत्र की नैतिकता को मजबूत करने का एक गंभीर प्रयास है। अतः देश को उम्मीद है कि सांसद और विधायक इस कानून का बेहतर अनुपालन करते रहें।
विभिन्न समाचार पत्रों के संपादकीय पर आधारित।