अपनी गरिमा को संभाले एनजीटी

Afeias
18 Aug 2022
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पर्यावरण नियमन का एक महत्वपूर्ण निकाय है। हाल ही में जिस आवृत्ति के साथ अधिकरण के आदेशों की उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा रही है, उन्हें देखकर लगता है कि इसके लिए प्रदर्शन की समीक्षा और बेहतर स्टाफिंग की जानी चाहिए। कुछ माह पूर्व भी, उच्चतम न्यायालय की एक बेंच ने अधिकरण द्वारा विशेषज्ञ समितियों को स्थापित करने की आलोचना की थी। उदारीकरण के दो दशकों के बाद से अधिकरण ने अपना वास्तविक स्वरूप खो दिया है। कुछ कारण-

  • एनजीटी से अपेक्षा की गई थी कि वह न्यायालयों में लंबित पर्यावरण से संबंधित मामलों को जल्दी निपटा सकेगा। इस हेतु इसे न्यायिक और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ महत्वपूर्ण शक्तियों वाला निर्णायक निकाय बनाया गया था।

राजनीतिक समर्थन के बिना इसके कई बड़े आदेशों को लागू नहीं किया जा सका है। इसमें 10 साल पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंध, आरओ वाटर प्यूरीफायर और रेत खनन वाले मुख्य मामले हैं।

  • एनजीटी ‘विकास बनाम पर्यावरण’ बहस का शिकार बना हुआ है, जिसका कोई आसान जवाब नहीं है।
  • स्टाफ की दिक्कतें हैं। एनजीटी अधिनियम के प्रत्येक 10-20 न्यायिक और विशेषज्ञ सदस्य होने के आदेश के खिलाफ, वर्तमान में सात न्यायिक और छह विशेषज्ञ सदस्य हैं। कम सदस्यों के कारण बैकलॉग और जल्दबाजी में मामलों का निपटान होने से एनजीटी के आदेशों के खिलाफ अपील की नौबत आ रही है।

एनजीटी ने 2021 में कोविड के दौरान वर्चुअल सुनवाई के साथ उच्च निपटान दर का दावा किया है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि डेटा आदेशों की गुणवत्ता का प्रमाण नहीं होता है। अनेक परियोजनाओं को मंजूरी देने या अवरूद्ध करने के एनजीटी के आदेश के खिलाफ स्थगन एनजीटी की विश्वसनीयता को कम कर रहे हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 जुलाई, 2021

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