वन संपदा पर वास्तविक अधिकार किसका?
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- क्षतिपूरक वनारोपण योजना एवं प्रबंधन प्राधिकरण (Compensatory Afforestation Management and Planning Authority – CAMPA) के पास वन भूमि के प्रयोग के एवज में इकट्ठी हुई 41 हजार करोड़ रुपये की धनराधि है। इस राशि के उपयोग यानी वनारोपण आदि में होने वाले खर्च से संबंधित एक विधेयक लाया गया है।
- यहाँ सवाल यह है कि जब वनभूमि को वन के अतिरक्ति अन्य किसी उपयोग के लिए दिया जाता है, तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव किस पर पड़ता है? इसका सीधा प्रभाव पारिस्थितिकीय एवं स्थानीय तथा वन के आसपास बसे हुए ग्रामों पर पड़ता है।
समस्या क्या है?
- भारत में अभी भी वन प्रबंधन के तौर-तरीके उपनिवेशवादी मानसिकता के गुलाम हैं। वन को पूरी तरह से राज्य की संपत्ति समझा जाता है।
- वन-प्रबंधन का दायित्व स्थानीय लोगों को दिए जाने को लेकर काफी आवाज उठाई गई। यही कारण है कि सन् 2006 में वनाधिकार कानून (FRA-Forest Right Act) बनाया गया। इसके तहत अब वन-भूमि को अन्य कार्यों में लगाए जाने से पहले स्थानीय ग्राम-सभा को अनुमति एवं समर्थन लेना आवश्यक हो गया है। इसी कड़ी में वनारोपण से संबंधित गतिविधियों के लिए ग्राम सभा की अनुमति लेने हेतु संशोधन विधेयक लाया गया है।
- अब सरकार ग्रामसभा से अनुमति वाले प्रावधान के बिना ही विधेयक को पारित कराना चाहती है। सरकार चाहती है कि 41,000 करोड़ रु. की राशि से किये जाने वाले वनारोपण का दायित्व वन-विभाग को दिया जाए। पूर्व अनुभव, इस कार्य में वन-विभाग की असफलता को दिखाता है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि वन-विभाग ने पिछले दशक में एक करोड़ 94 लाख हैक्टेयर भूमि पर वनारोपण किया, परंतु वन-क्षेत्र में कोई वद्धि नहीं हुई है।
समाधान
- होना यह चाहिए कि 41,000 करोड़ की राशि वनों की नष्टभूमि को पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय समुदायों को ही दी जाए। इस तथ्य के पीछे कई कारण हैं और कई ऐसे सफल उदाहरण भी, जो यह बताते हैं कि स्थानीय लोगों के प्रयास से किस प्रकार वन पुनर्जीवित किए गए हैं।
- उड़ीसा के लगभग 1000 गाँवों में स्थानीय जनता ने बिना किसी बाहरी मदद के आसपास के वनों को पुनर्जीवित कर दिया। भारत में ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। किसी स्थान विशेष की भूमि पर कब, क्या और कहाँ उपजाया जा सकता है, इसकी सही जानकारी दूर कार्यालयों में बैठे अफसरों की अपेक्षा स्थानीय जनता को अधिक होती है।
- समस्त विश्व में इस बात को माना गया है कि पारिस्थितिकीय संरक्षण के लिए स्थानीय कृषक एवं अन्य समुदायों के लोगों से बेहतर कोई नहीं हो सकता। चीन में 10 करोड़ हैक्टेयर से अधिक वन-भूमि स्थानीय समुदायों को सौंपी गई। वहाँ की सरकार ने वनों के संरक्षण हेतु कृषकों एवं स्थानीय निवासियों को प्रोत्साहन देने के लिए, लगभग 50 अरब डॉलर का निवेश किया है।
- भारत में भी किसानों ने वन-व्यवसाय को अपनाने में उत्साह दिखाया है। अनुमान है कि उद्योगों के लिए लगभग 85-90 प्रतिशत लकड़ी की पूर्ति यही लोग कर रहे हैं।
- कैम्पा निधि से वनों के आसपास रहने वाले गरीब समुदायों के आर्थिक स्तर को बढ़ाया जा सकता है। वनों के विनाश का सबसे ज्यादा प्रभाव इन वनों पर आजीविका के लिए निर्भर आदिवासियों पर पड़ता है। कंचन चोपड़ा एवं आई आई एफ एम समितियों ने आदिवासियों को क्षतिपूर्ति देने की सिफारिश भी की है। परंतु क्षतिपूरक वनरोपण निधि बिल (CAF)इस पर कोई चर्चा नहीं करता।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में नीरा सिंह के लेख पर आधारित