अधिकार किसका ?

Afeias
29 May 2019
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Date:29-05-19

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हाल ही में पेरिस की कंपनी ने उन किसानों पर मुकदमा दायर किया, जो उसके ‘लेज़’ ब्रान्ड के चिप्स में उपयोग होने वाली आलू की एक किस्म का उत्पादन कर रहे थे। इस मुद्दे से संबंधित कुछ प्रश्न उभरकर आते हैं, जिनके उत्तर से यह पता चलता है किसानों का ऐसा करना वैध है या अवैध।

आलू की खास किस्म एफ एल 2017 का वास्तविक स्वामित्व किसके पास है? क्या इस पर उस किसान का अधिकार है, जिसने इसे खरीदा, लगाया और अपने खेत में तैयार किया या फिर इसके जन्मदाता का, जिसने कुरकुरे चिप्स बनाने के उद्देश्य से कम नमी वाली आलू की ऐसी संकर नस्ल की खोज की ?

  • एक समय था, जब बहुराष्ट्रीय या निगम मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के बड़े समर्थक थे। उस दौर में सभी अंतरराष्ट्रीय व्यापार निगम यही चाहते थे कि देशों की व्यापार बाधाओं को हटाया जाए, जिससे देशों को खुला मैदान मिल सके। इसमें किसी के साथ भेदभाव न हो। जी ए टी टी समझौते और विश्व व्यापार संगठन का मूल आधार यही रहा है। ऐसे में किसी किसान को आलू की लाभकारी किस्म उगाने से कैसे रोका जा सकता है?
  • बौद्धिक संपदा अधिकार कानून ट्रिप्स (ट्रेड रिलेटेड आस्पैक्टस ऑफ इंटेलक्ट्यूल प्रापर्टी राइट्स) और यूपोव (यूनियन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वरायटीस) का प्रभावी ढांचा पौधों की किस्म के प्रजनकों को उनके द्वारा विकसित की जाने वाली किस्मों पर विशेष अधिकार देता है। कानून अपने आनुवांशिक संसाधनों और उससे संबंद्ध ज्ञान के लिए सामान्यतः स्वदेशी और अन्य कृषक समुदायों के अधिकारों की अवहेलना करता है। इस पूर्वाग्रह ने उन भिन्न राष्ट्रीय कानूनों को समाप्त कर दिया है, जो कार्पोरेट प्रजनकों के अधिकारों के अधीनस्थ किसानों के स्वामित्व के दावों का प्रतिपादन करते हैं।
  • पौधों में फैलाव की प्रक्रिया आंतरिक होती है। कोई भी किसान किसी ऊपज का बीज एक बार खरीद ले, तो जरूरी नहीं कि उसे दोबारा बीज खरीदना पड़े। इससे बीज कंपनियों को नुकसान होता है। किसानों के पास प्राकृतिक रूप से तैयार बीजों को बेचने, सुरक्षित रखने और फिर से उपयोग करने के अधिकार की रक्षा की वकालत बौद्धिक संपदा कानून नहीं करता है। फिर भी यह कई देशों में अवैध रूप से प्रचलित है।
  • अंतरराष्ट्रीय कानून के झुकाव को देखते हुए भारतीय पौध प्रजाति व कृषक अधिकार रक्षा कानून, बीज के प्रजनक और किसान; दोनों को ही समान अधिकार देता है। इससे बीज की गुणवत्ता भी बनी रहती है, और किसानों को आजीविका का एक साधन भी मिला रहता है। इन दोनों उद्देश्यों को लेकर चलने का अर्थ है कि कानून के भाग (2) (ब) के अंतर्गत किसान और प्रजनक दोनों का ही स्वामित्व अधिकार मान्य है। भारतीय किसान को तो सादे खाकी लिफाफे में बीज की किसी भी किस्म को बेचने का अधिकार है। इसका अर्थ है कि पेप्सिको कंपनी द्वारा किया गया दावा गलत है। किसानों को आलू की विशेष प्रजाति उगाने के लिए लाइसेंस या किसी तकनीकी समझौते की आवश्यकता नहीं है।

भले ही कृषक अधिकार और पौध प्रजाति रक्षा कानून ने दोनों को समान अधिकार दिए हों, परन्तु बौद्धिक संपदा कानून से छोटे किसानों को चोट पहुंचने की आशंका बनी रहेगी। अतः हमें इस क्षेत्र में अधिक स्पष्ट कानून बनाने की आवश्यकता है।

‘द इंडियान एक्सप्रेस’ में प्रकाशित राजश्री चंद्रा के लेख पर आधारित। 2 मई, 2019

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