नगर-वन निगम की अवधारणा 

Afeias
30 May 2019
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Date:30-05-19

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विश्व के अनेक देशों की तुलना में भारत में वनों की प्रचुरता है। साथ ही यहाँ नगरीकरण भी तेजी से हो रहा है। इसके कारण मानव-बस्तियों औैर वनों के बीच की दूरी कम होती जा रही है। आने वाले दस वर्षों में स्थिति और भी बदतर हो सकती है, जो पर्यावरण की स्थिरता के लिए खतरा बन सकती है।

गुरुग्राम, मुंबई, हैदराबाद, जयपुर और बैंगलुरु जैसे शहरों में तो पहले ही शहरों के विस्तार के चलते अतिक्रमण, सड़क और राजमार्ग, स्थानीय वन्य प्रजातियों का लुप्त होना, जल-निकायों का प्रदूषण आदि अव्यवस्थाएं जन्म ले चुकी हैं। भारत के अन्य नगरों में भी वन्य जीवों के आश्रयों और जैव विविधता युक्त क्षेत्रों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।

मुँह बाए खड़ी ऐसी चुनौतियों के बावजूद स्मार्ट सिटी योजना और 2018 की नई वन नीति में इनसे निपटने के कोई प्रयास दृष्टव्य नहीं हैं। नगर नियोजकों और नगर प्रशासकों ने इस बात की पूरी तरह अनदेखी कर दी है कि जलवायु-परिवर्तन, स्वच्छ जल की कमी, बाढ़-नियंत्रण, गर्मी से बचाव और बढ़ते प्रदूषण से धूसर होते नगरों के लिए वनों का कितना महत्व है। वनों की रक्षा का दारोमदार इसी तथ्य पर है कि ऐसी स्थितियों में नगर प्रशासन प्रकृति की रक्षा कैसे करता है ? सवाल यह है कि नगर-वन निगम की अवधारणा की शुरूआत कैसे और कहाँ से की जाए ?

  • हाल ही में संरक्षित क्षेत्रों में पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र बनाए गए हैं, जिनसे शुरूआत की जा सकती है। इन क्षेत्रों की पहचान, पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय पार्कों और वन्य-जीवन अभ्यारण्यों के आसपास कुछ भू-पट्टियों के रूप में की है। समिति और उसकी योजनाएं वन विभाग, नगर निकाय व नागरिक-समितियों के आपसी तालमेल से तैयार की जा रही हैं।
  • नगरों के विस्तार में अक्सर वनों की सीमाओं तक फैलाव हो जाता है, जैसा कि मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क और बेंगलुरू के बनेरघाटा वन क्षेत्रों में हुआ है। वनों की सीमाओं को चारदीवारी से न घेर पाने की स्थिति में अनियोजित ढांचों को खड़ा होने से रोकने हेतु पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र के अंतर्गत मास्टरप्लान में ही वन भूमि के आसपास के क्षेत्रों को पहचानने के लिए दिशानिर्देश दिए गए हैं। साथ ही नगरों के विकास में वन्य-पशु आवागमन पथ और हरित-पट्टिकाओं की रक्षा के प्रावधान हैं।
  • नगरवासियों की भूमिका भी बहुत महत्व रखती है। नगरों में रहने वाल लोग हरे-भरे, प्रदूषण-मुक्त और शांत पर्यावरण में रहने की आशा रखते हैं। अतः नगर योजना में वनों के रखरखाव को शामिल करने से इसमें नागरिकों को सीधे जोड़कर नगरों के भविष्य को उज्जवल बनाया जा सकता है। नगरों के स्वास्थ्य के लिए वनों के महत्व को समझते हुए; नागरिकों को चाहिए कि वे वनों की रक्षा के लिए प्रयाय करते रहें।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सिद्धांत नौलखा के लेख पर आधारित। 13 मई, 2019

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