नीति आयोग (National Institute for Transforming India) के लिए चुनौतियाँ
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देश की प्रगति की दिशा में बढ़ते हुए प्रधानमंत्री की कई त्वरित योजनाएं हैं। इनके परिणाम बेहतर हो सकते हैं, परंतु उनको प्राप्त करने का रास्ता नीति आयोग के लिए कई चुनौतियाँ लिए खड़ा है। इनमें कुछ चनौतियाँ हैं-
- जनसंख्या वृद्धि 2016 की ग्लोबल फूटप्रिंट नेटवर्क रिपोर्ट के अनुसार हमने इस वर्ष के सात महीनों में ही साल भर के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर लिया है। आगे आने वाले वर्षों में भी हमारी जनसंख्या उस सीमा तक पहुँच जाएगी, जिसकी आवश्यकताओं की आपूर्ति अत्यंत कठिन हो जाएगी। इस संकट से उबरने के लिए जल, पोषण, स्वास्थ्य, मानवीय संसाधन, शिक्षा, ऊर्जा एवं अन्य संसाधनों की उपलब्धता के लिए दूरदर्शिता एवं पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता है।
- अगले 25 वर्षों में हमारे यहाँ वृद्धों की यानि 64 वर्ष से ऊपर की जनसंख्या लगभग दुगुनी हो जाएगी। इस वर्ग को स्वास्थ्य सेवाओं की तत्काल आवश्कता होती है। नीति आयोग को इसके लिए जापान जैसे वृद्धों की बहुतायत वाले देशों से सबक लेकर अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप भविष्य की नीतियाँ गढ़नी होंगी।
- भारत में आर्थिक रूप से उत्पादक प्रत्येक 100 की जनसंख्या की तुलना में आर्थिक रूप से निर्भर जनसंख्या का अनुपात भी तेजी से बढ़ रहा है। सन् 1950 में यह जहाँ 8 था, वह 2010 में बढ़कर 11.1 प्रतिशत हो गया है। यह भी एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने है।
- कृषि-उत्पादकता एवं लाभ को केंद्र में रखकर प्रत्येक को एक उत्पादक काम से जोड़ना प्रधानमंत्री का सपना है। इस प्रकार असमानताओं को दूर करते हुए प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाना नीति आयोग के लिए दुरूह होगा। साथ ही पर्यावरणीय चुनौतियों का भी सामना करना होगा।
- आने वाले वर्षों में स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं पर काम करने के साथ ही ग्रामीण, कस्बों एवं शहरी क्षेत्रों के बीच के बुनियादी ढांचों की दूरी को कम करना होगा। साथ ही एक ऐसे सामाजिक-आर्थिक स्वरूप को गढ़ना है, जिससे हमारी प्रगति के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक सामंजस्य का ढांचा बना रहे।
नीति आयोग के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से भारतीय पृष्ठभूमि के विषय-विशेषज्ञों, लोगों के मतों एवं दृष्टिकोणों को पर्याप्त महत्व देने पर जोर दिया है। इसका सीधा संबंध भविष्य की नीतियों एवं विकास के लिए मौलिक विषयों की पुनर्सरंचना एवं पुनर्विश्लेषण से है। यह नीति आयोग की टीम एवं उसकी सही पहुंच पर निर्भर करेगा कि वह कितनी सफल हो पाती है।
‘इकॉनॉमिक टाइम्स’ में मुरली मनोहर जोशी के लेख पर आधारित।
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