अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा समझौता

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13 Sep 2016
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cc-13-sept-16Date: 13-09-16

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गतवर्ष नवम्बर में प्रधानमंत्री मोदी एवं फ्रांसिसी राष्ट्रपति ओलेंदो ने पेरिस में आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में  अंतरराष्ट्रीय सौर समझौते (ISA) पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते की मुख्य बातें निम्न रही-

  • आई एस ए का मुख्यालय गुरूग्राम में स्थापित किया गया। भारत ने इस समझौते में 400 करोड़ रु. की वित्तीय सहायता देना स्वीकार किया है।
  • जनवरी 2015 तक जर्मनी, चीन, जापान, अमेरिका और इटली जैसे बड़े-बड़े देशों के पास ही सौर ऊर्जा की विकसित तकनीकें होने के कारण ये ही देश विश्व में सौर ऊर्जा का सही उपयोग कर पा रहे हैं। अफ्रीका जैसे देशों में सौर ऊर्जा बहुतायत में है। परंतु आधुनिक तकनीक के अभाव में ये सौर ऊर्जा का पर्याप्त संचय एवं उपयोग करने में असमर्थ हैं। आई एस ए के माध्यम से विकासशील देश भी अपने यहाँ सौर ऊर्जा को विकल्प के तौर पर अधिक से अधिक परिवर्तित कर पाएंगे।
  • अभी तक सौर ऊर्जा के विकास को बाधित करने के तीन मुख्य कारण रहे हैं- (1) इसके डेवलपर्स को सौर ऊर्जा तकनीक बहुत महंगी पड़ती है। (2) सौर ऊर्जा से संबंधित योजनाएं एवं नीतियां असंगत होती हैं एवं अधिकतर असफल हो जाती हैं। अतः इसमें निवेश और इसका विकास करने वाले हिचकते हैं। (3) इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं खोज के लिए पर्याप्त धनराशि का अभाव है।

ये कुछ ऐसे तथ्य हैं जिनके कारण सौर ऊर्जा को गति नहीं मिल पाई है। आई एस ए से उम्मीद की जा सकती है कि वह इन समस्याओं के समाधान ढूंढेगा।

आई एस का लक्ष्य

  • आई एस ए अब सौर ऊर्जा को प्रयोगशाला से उठाकर जन-जन तक पहुँचाना चाहता है।
  • यह इस तरह का मंच है, जहाँ सौर ऊर्जा वाले देश एकत्र होकर विश्व में इसके खरीददार तैयार करेंगे, उपलब्ध सौर ऊर्जा तकनीकों को साझा करेंगे एवं सौर ऊर्जा में शोध एवं अनुसंधान को प्रोत्साहित करके इसकी कीमतों को कम करने की कोशिश करेंगे।
  • घरों के लिए सौर ऊर्जा तथा व्यावसायिक उपयोग के कई तकनीकें तैयार हैं। अब इन्हें प्रोत्साहन की आवश्यकता है। यह काम आई एस ए को करना है।
  • कृषि के क्षेत्र में आई एस ए ने एक वृहद कार्यक्रम तैयार कर लिया है। अब आॅफ-ग्रिड ऊर्जा के लिए वित्तीय व्यवस्था की आवश्यकता होगी।
  • अब चूंकि बड़े-बड़े सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट शोध एवं अनुसंधान में निवेश कर रहे हैं, सदस्य देशों से उम्मीद की जा सकती है कि वे धन या वस्तु के रूप में साधन उपब्ध कराएं एवं शोध में सहयोग करें। साथ ही इन तकनीकों के परीक्षण के लिए बाजार उपलब्ध कराएं।
  • विकसित देशों में सौर ऊर्जा तकनीक की कीमतें कम करने एवं सोलर पैनल की क्षमता को बढ़ाने के लिए संबंधित शोध पर आई एस ए पुरस्कार भी देता है।

आई एस के समक्ष चुनौतिया

  • अंतर्सरकारी संस्थान होते हुए भी इसका सचिवालय बहुत छोटा है। आशंका है कि इसमें काम करने वाले गिनती के कर्मचारी निजी क्षेत्र के प्रति कितनी जबावदेही रख पाएँगे?
  • इसके 121 सदस्य देश कानूनी विवादों, सदस्यता अधिकार एवं व्यवहार में वरीयता प्राप्त करने के पचड़ों में फंस सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो इस अतरराष्ट्रीय संस्था के सिद्धांतों का नाश हो जाएगा।

आवश्यक है कि आई एस ए की रीढ़ की हड्डी बने हुए देश इसके लक्ष्यों, गतिविधियों एवं इसके महत्व को स्पष्ट तौर पर अन्य सदस्य देशों के समक्ष इस प्रकार दोहराते रहें कि वे अपने उद्देश्य न भूलें ।

हिंदू में अरुणाभ घोष एवं कनिका चावलाके लेख पर आधारित

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