क्या रोबोट रोजगार छीन लेंगे?

Afeias
14 Sep 2016
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अच्छे मानसून के चलते इस वर्ष आर्थिक प्रगति की उम्मीद बढ़ गई है। अनेक क्षेत्रों में हुए सुधारों के कारण आर्थिक आधार मजबूत हो रहा है। रोजगार एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ अभी भी काम करने की बहुत आवश्यकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि रोजगार के साधन बढ़ रहे हैं। परंतु इनका विस्तार अनौपचारिक क्षेत्र में अधिक हुआ है। इस क्षेत्र में वेतन भी तेजी से बढ़ा है, जिसके कारण जनता का जीवन-स्तर बढ़ा, गरीबी कम हुई और इस कारण लोगों में संतोष भी बढ़ा है। परंतु प्रथम व द्वितीय श्रेणी के रोजगारों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। यही कारण है कि गुजरात के पटेल, हरियाणा के जाट और असम के अहोम्स जैसी जातियाँ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रही हैं।

यदि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मानें, तो विश्व में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से बढ़ रही है। लेकिन रोजगार की समस्या ज्यों की त्यों है। अमरोब में जब सफाई कर्मचारी के 114 पदों की भर्ती के लिए सूचना निकाली गई, तो 19 हजार आवेदन आए, जिसमें एम.बी.ए और इंजीनियर भी थे।

उच्च श्रेणी के बेरोजगारी के मुख्य कारण क्या हो सकते हैं?

  • हमारी शिक्षा व्यवस्था निराशाजनक है। इसमें हर स्तर पर सुधार की आवश्यकता है। असंख्य नौजवान किसी भी विश्वविद्यालय से ऐसी डिग्रियां ले रहे हैं, जो उन्हें रोजगार दिलवाने में निरर्थक साबित होती हैं। पिछले दशक में हर गली-मुहल्ले में खुलने वाले इंजीनियरिंग कॉलेज बेहिसाब इंजीनियर पैदा कर रहे हैं। यही स्थिति चिकित्सा महाविद्यालयों की भी है। इन महाविद्यालयों से निकले विद्यार्थियों का स्तर आईटी उद्योगों में रोजगार प्राप्त करने लायक नहीं होता।
  • रोजगार छीनने वाले में रोबोट बहुत बड़े कारण हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार अमेरिका में भी खाद्य एवं आवास, वित्त एवं बीमा, रीटेल एवं उत्पादन क्षेत्रों में बेरोजगारी का एक बहुत बड़ा कारण यही स्वचालन है। हालांकि रोबोट के कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ जाने का खतरा गलत भी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। यह बात अलग है कि बहुत से देशों में काम की प्रकृति निचली श्रेणी के ज्यादा हैं और लोग ऐसे रोजगार अपनाने में हिचकेंगे। अगर अमेरिका का ही उदाहरण लें, तो पता चलता है कि रोबोट के प्रयोग के बाद भी बेरोजगारी की दर घटकर8 प्रतिशत रह गई है। परंतु वहाँ दो दशकों से वेतन में कोई वृद्धि नहीं हुई है। वहां के नेता भी उच्च-श्रेणी की नौकरियों की कमी पर लोगों के असंतोष को संभालने की कोशिश में लगे हैं। वे सारा दोष वैश्वीकरण पर डाल देते हैं। परंतु इसका मूल कारण स्वचालन है।
  • वाहन उद्योग (Auto Industry) तेजी से स्वचालित कारों का उत्पादन कर रहं हैं। वस्तुओं की घर-पहुँच सेवा का काम भी अब इंसानों की जगह धीरे-धीरे ड्रोन से लिया जाएगा। इलैक्ट्रॉनिक क्षेत्र की फॉक्स कॉम कंपनी ने घोषणा कर दी है कि वह अपना 70 प्रतिशत कार्य रोबोट के माध्यम से करवाएगी। अब तो कम्प्यूटर सॉफ्ट वेयर भी स्वचालित होने लगे हैं।
  • फिलहाल दो प्रमुख उद्योग; जूता एवं कपड़ा ऐसे हैं, जो मानवीय क्षमता पर आश्रित हैं। देखा गया है कि रोबोट भारी भरकम मशीनों वाले काम तो आसानी से कर लेते हैं, परंतु कपड़े या चमड़े जैसी मुलायम वस्तुओं पर वे खरे नहीं उतरते। अभी भी बड़े-बड़े उद्योगों में कपड़े और चमड़े को सीने का काम मनुष्यों द्वारा ही किया जाता है।
  • इन दोनों ही उद्योगों में शोध एवं अनुसंधान भी कम हुए हैं और परंपरागत तरीके से काम होता आ रहा है।

नाइके जैसी कंपनी ने अब रोबोट की मदद से फाइबर एवं अन्य सामग्री का उपयोग करके जूता बना लिया है, जो बहुत ही उच्च गुणवत्ता का है। यह ओलंपिक एथलीटों के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। अगर यह सफल रहा, तो जल्द ही मानव-निर्मित कपड़े एवं जूते की जगह रोबोट निर्मित जूतों-कपड़ों का चलन हो जाएगा और करोड़ों रोजगार बेरोजगार हो जाएंगे।

भारत के  लिए समाधान क्या है?

  • नीति आयोग के प्रमुख अरबिंद पंगड़िया मानते हैं कि कपड़ा एवं चमड़ा उद्योग में भारत को चीन से प्रेरणा लेकर नए-नए रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए। चीन में वेतन-वृद्धि के कारण ये उद्योग वहाँ से बाहर जा रहे हैं। परंतु भारत में बुनियादी सुविधाओं के अभाव एवं कड़े श्रम कानून के कारण वे उद्योग बांग्ला देश एवं कंबोडिया जैसे देशों में जा रहे हैं। भारत को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए।
  • भारत के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाना आसान नहीं होगा। अच्छा है कि वह ऐसी बाजार या उद्योग-श्रृंखला को विकसित करे, जो सस्ते श्रम की जगह सस्ते कौशल पर आधारित हों। नई तकनीक निश्चित रूप से पुराने रोजगार को खत्म करेगी, परंतु नए अवसर भी अवश्य देगी। भविष्य के लिए हमें कौशल-संपन्न होना होगा एवं लचीला दृष्टिकोण रखना होगा।


टाइम्स ऑफ़ इंडिया में स्वामीनाथन अंकलेश्वर अय्यर के लेख पर आधारित।

 

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