सीओपी 28 : चुनौतियां और भारत का दृष्टिकोण
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हाल ही में दुबई में सीओपी 28 सम्मेलन संपन्न हुआ है। इस सम्मेलन का अंत तीन मुख्य बिंदुओं पर समझौते के साथ हुआ है –
1) सभी देश हानि और क्षति निधि (लॉस एण्ड डेमेज फंड) पर सहमत हुए हैं। इसमें फिलहाल 42 करोड़ डॉलर के लगभग की निधि जमा है, जिसे एक अरब तक ले जाने का लक्ष्य है। इस निधि से जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेल रहे गरीब और छोटे विकासशील देशों की मदद की जानी है। ऐस अधिकांश देश ग्लोबल साउथ में हैं।
इस सम्मेलन में मौसम की मार झेल रहे देशों में विकास परियोजनाओं के जोखिम और उनकी उच्च लागत को कम करने के लिए रियायती, अनुदान आधारित आर्थिक और मिली-जुली सहायता के बारे में नई समझ देखी गई।
2) दूसरा बिंदु बढते वैश्विक तापमान को नियंत्रण में रखने से जुड़ा है। यह 1.4 डि.से. तक बढ़ चुका है। यदि हमने उत्सर्जन कम नहीं किया, तो 2100 तक यह तीन डिग्री से॰ तक बढ़ जाएगा। तापमान में वृद्धि को 1.5 डि.से. से नीचे रखने के लिए हमें 2030 तक उत्सर्जन में 42% कटौती करके उसे 53.8 अरब टन से 22 अरब टन तक लाने की जरूरत होगी।
3) उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य हासिल करने के लिए देशों को पवन और सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर मुड़कर जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने पर जोर दिया गया।
ऊर्जा परिवर्तन की चुनौतियां – वैश्विक-ऊर्जा परिदृश्य में पूरी तरह से विरोधाभास है। नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ा है, लेकिन कुल ऊर्जा खपत भी बढ़ी है। इसके चलते जीवाश्म ईंधन या कोयले का अधिक उपयोग हो रहा है। इससे पृथ्वी के तापमान को नियंत्रण में रखने के प्रयासों को धक्का लगा है। यूं तो अमीर देश ग्रीन हाउस गैस का सबसे अधिक उत्सर्जन करते हैं, लेकिन वे हरित ऊर्जा में अच्छा खासा निवेश दिखाकर इस आरोप की जिम्मेदारी लेने से बच जाते हैं। वहीं गरीब और छोटे विकासशील देशों के लिए निधि के अभाव में ऊर्जा परिवर्तन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
विज्ञान यह कहता है कि 2050 तक बेरोकटोक कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए। तेल में 60% और गैस में 45% की कमी होनी चाहिए। विकासशील देश, ऊर्जा के लिए कोयले पर अधिक निर्भर हैं। इसलिए कायदे से तो उन्हें इसके उपयोग की अनुमति मिलनी चाहिए।
भारत का दृष्टिकोण –
- भारत अपने महत्वपूर्ण जलवायु लक्ष्यों के प्रति काफी प्रतिबद्ध है। चीन और अमेरिका के मुकाबले भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन काफी कम है।
- लक्ष्यों में 2030 तक गैर जीवाश्म ईंधन से 50% ऊर्जा उत्पादन करना है।
- ऊर्जा सघनता में 2005 से अब तक 45% की कमी लाई जानी है।
- 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य पर लाना है।
कार्ययोजना क्या हो ?
- हरित ऊर्जा अपनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयास जारी रखे जाएं।
- आवास की कमी, जैव विविधता में गिरावट और जल संकट जैसे मुद्दों के समाधान के लिए जलवायु कार्रवाई के दायरे को व्यापक करना होगा।
- उच्च गुणवत्तापूर्ण जलवायु अनुसंधान क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा। तकनीक विशेषज्ञों की मदद से सौर और पवन ऊर्जा को पावर ग्रिड से संचालित करना होगा। इसके भंडारण की व्यवस्था करनी होगी।
जलवायु परिवर्तन के लगातार बढ़ते दुष्प्रभवों से गरीबों के पास पलायन ही एकमात्र रास्ता रह जाता है। इससे राजनैतिक संकट बहुत बढ़ रहे हैं। इन सभी चुनौतियों को संबोधित करने की जिम्मेदारी विकसित देशों पर अधिक है, और उन्हें इसका समाधान जल्द-से-जल्द ढूंढना चाहिए।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 15 दिसंबर, 2023