कंपनियों के विवादित और कमजोर बोर्ड से उनका कम होता प्रभाव
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भारत में औद्योगिक घरानों का और प्रवर्तक नियंत्रित कंपनियों का पुराना इतिहास है। इन कंपनियों ने देश के विकास में बहुत योगदान दिया, रोजगार उत्पन्न किए तथा कई ब्रांड भी बनाए। लेकिन इन कंपनियों के पारिवारिक झगड़े, अस्पष्ट निर्णय तथा कमजोर बोर्ड, निवेशकों तथा कार्पोरेट प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। रेमंड, ऐलिगियर और हीरोमोटोकार्प जैसी कंपनियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि कंपनियों को चलाने के तरीके में सख्त बदलाव की जरूरत है।
भारतीय पूँजीवाद “प्रवर्तक-केंद्रित स्वामित्व” मॉडल है। इसीलिए 70 सूचीबद्ध कंपनियों में 50% से अधिक इक्विटी प्रवर्तकों के पास होती है, कई बार कार्यकारी अधिकार भी इनके पास होता है। इससे शीघ्र निर्णय लेने में सहायता तो मिलती है, पर छोटे शेयरधारकों के लिए अपारदर्शिता के कारण समस्या खड़ी हो जाती है।
जैसे- हीरो मोटोकार्प फंड के दुरूपयोग को लेकर जांच के दायरे में आ गई। रेलिगियर इंटरप्राइजेज का विवाद अपराधिक जाँच और बोर्डरूम में अव्यवस्था से भरा है रेमंड कंपनी पर भी वित्तीय अनियमितता तथा बोर्ड पर नियंत्रण जैसे आरोप सामने आए हैं।
कंपनियों के बोर्ड के कमजोर होने के कारण –
- इन विवादों का एक बड़ा कारण स्वतंत्र निगरानी की कमी है। कंपनी के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक तो होते हैं, पर सामाजिक संबंध, सांस्कृतिक अंतर तथा आर्थिक निर्भरता इनकी प्रभावशीलता को कम करती है।
- कंपनियों की अनिवार्य संरचना में एक-तिहाई स्वतंत्र निदेशक अनिवार्य हैं लेकिन ये प्रवर्तकों की ताकत पर रोक लगाने की बजाय सिर्फ नाम व प्रतिष्ठा के लिए होते हैं।
- संबंधित पक्षों के मध्य होने वाले लेनदेन प्रशासन संबंधी जोखिम का कारण बनते हैं। यद्यपि सेबी ने इसके लिए सख्त नियम बनाये हैं, पर कंपनियों में निजी तथा व्यवसायिक हितों के बीच की रेखा बहुत धुंधली होने के कारण इन नियमों का पालन नहीं हो पाता।
कंपनियों के बोर्ड कमजोर होने के प्रभाव –
- इससे निर्णयों में देरी होती है, जिससे निवेशकों का भरोसा कम होता है।
- कंपनी के बाजार मूल्य में गिरावट आती है, काम में रुकावट आती है तथा नियामकीय दंडशुल्क भी लग जाता है।
- आज वैश्विक निवेशक निवेश के समय पर्यावरण, सामाजिक और शासन संबंधी मानकों को प्राथमिकता देते हैं। इस तरह के विवाद भारत के मूल्यांकन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, क्योंकि निवेशक पारदर्शिता, जवाबदेही और स्वतंत्र निगरानी चाहते हैं।