सिविल सेवा का मोहक जाल और सुधार की गुंजाइश
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भारत में सिविल सेवाओं के लिए आकर्षण ऐतिहासिक है। वास्तव में सिविल सेवाओं की तैयारी करना एक राष्ट्रीय शगल माना जाता है। लेकिन हाल ही में इससे जुड़ी दो दुखद घटनाएं हैं, जो इन सेवाओं की चयन प्रक्रिया में सुधार की मांग करती हैं –
1) पहली घटना में महाराष्ट्र की एक प्रशिक्षु अधिकारी को अपनी पहचान और दस्तावेजों में जालसाजी करते हुए पाया गया।
2) दूसरी घटना में दिल्ली के एक नामी कोचिंग संस्थान में तीन अभ्यार्थियों की डूबने से मौत हो गई।
सुधार किए जा सकते हैं –
– उम्मीदवारों के लिए अधिकतम आयु सीमा को कम किया जाना चाहिए।
– प्रयासों की संख्या तीन तक सीमित की जा सकती है। विशेष श्रेणियों को एक अतिरिक्त प्रयास की अनुमति दी जा सकती है।
– एक ऐसा विश्लेषण किया जाना चाहिए, जो यह दिखाए कि कितने उम्मीदवार अपने प्रयासों को दोहराते रहते हैं, और अंततः अपने अवसरों की समाप्ति पर हार मान लेते हैं।
– युवा पीढ़ी को यह बताया जाना चाहिए कि सरकारी सेवा ही राष्ट्र की सेवा करने का एकमात्र तरीका नहीं है। ईमानदारी से की गई कोई भी मेहनत राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण है।
इन उपायों से सिविल सेवाओं के नाम पर बढ़ते कोचिंग उद्योग पर कुछ लगाम लगाया जा सकता है। इन सेवाओं के पास न तो सार्वजनिक सेवा का एकाधिकार है, और न ही यह राष्ट्र सेवा का कोई असाधारण अवसर प्रदान करती है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 अगस्त, 2024