बिग टैक बनाम भारत सरकार

Afeias
01 Mar 2021
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Date:01-03-21

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दुनियाभर के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी प्रक्रिया को तटस्थ, पारदर्शी और सुसंगत रखें। हाल ही में भारत सरकार और ट्विटर के बीच कुछ विवाद उत्पन्न हो गया है। यह ट्विटर के पक्षपातपूर्ण रवैये, जवाबदेही के अभाव और अपना कानून स्वयं बनाने को लेकर उत्पन्न हुआ है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ट्विटर के दोहरे मापदंडों को लेकर आपत्तियां दर्ज की हैं। मंत्रालय का मानना है कि अमेरिका में हुए व्हाइट हाउस हमले, और भारत के लाल किले पर हुए अतिक्रमण पर ट्विटर ने भिन्न रूख अपनाया है।

यह मामला तब सामने आया, जब सरकार ने 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर रैली को लेकर भ्रम व हिंसा फैलाने वाले ट्विटर अकांउटों को ब्लॉक करने का आदेश दिया था। इसके चलते ट्विटर ने कुछ अकांउटों को यह कहकर इससे परे रखा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की नीति के तहत यह कदम उठाया गया है। साथ ही उसका यह भी कहना है कि सरकार द्वारा उसको भेजे गए नोटिस, देश के कानूनों के अनुरूप नहीं थे।

सोशल मीडिया मंचों का ऐसा मनमाना रवैया केवल भारत की समस्या नहीं है। पिछले दिनों फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुअल मैक्रों ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को सत्ता में रहते हुए चढाने, और पदच्युत होने के बाद एकदम से नीचे गिराने में सोशल मीडिया के दखल और भूमिका को लेकर नाराजगी व्यक्त की थी। इन मंचों के नियमों में अपारदर्शिता और असंगतता को लेकर पूरे विश्व में चिंता व्याप्त है। इसका कारण है- इन मंचों की व्यापकता।

ऐसा देखा जाता है कि ये मंच जनता की सोच और रूख को परिवर्तित करने में अहम् भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि यूरोप में जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन नामक कानून के अधीन सोशल मीडिया मंचों को विनियमित किये और यूजर्स की निजता को सुरक्षित रखा गया है। अगर कोई इस कानून में निर्धारित निजता व सुरक्षा के स्तर का उल्लंघन करता है, तो उस पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाता है।

ऐसा देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत सरकार को भी अपनी निर्णय-क्षमता को दुरूस्त करने की जरूरत है। जब वह किसी सोशल मीडिया मंच को कोई निर्देश या आदेश देती है, तो उसे इस हेतु पूर्व-परिभाषित व सार्वजनिक किए गए नियमों के तहत् स्पष्टता के साथ देना चाहिए।

अगर सरकार पूर्व निर्धारित नियमों के बगैर या उससे परे ही सोशल मीडिया मंच को सैकड़ों खातों को ब्लॉक करने के लिए कहती है, तो इसका सीधा सा अर्थ है कि सरकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और खुली लोकतांत्रिक व्यवस्था की बातें कोरी बकवास हैं। वह अपनी तानाशाही के माध्यम से कुछ विरोधी आवाजों को चुप कराने के लिए उन्हें ब्लैकलिस्ट करना चाहती है।

जानकारी का अभाव ही अविश्वास को मजबूत करने का काम करता है। आधुनिकतम तकनीक से जुड़ी कंपनियों और सरकार के बीच टकराव में दोनों को बहुत विचार करने, और कई सवालों का जवाब देने की आवश्यकता है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 13 फरवरी, 2021