ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सरकार का कसता शिकंजा

Afeias
08 Dec 2020
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Date:08-12-20

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12 अक्टूबर 2020 को उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह मांग की कि भिन्न-भिन्न ओटीटी (ओवर द टॉप) और डिजीटल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रसारित होने वाली सामग्री के प्रबंधन और नियंत्रण हेतु एक विशिष्ट बोर्ड या संस्था बनाई जाए।

ओटीटी प्लेटफार्म क्या हैं ?

ओटीटी या ओवर द टॉप प्लेटफार्म ऐसी दृश्य और श्रव्य स्ट्रिमिंग सेवाएं है, जिनमें नेटफ्लिक्स, प्राइम विडियों आदि आते हैं। इनकी शुरूआत सामग्री को लेकर प्रसारित करने वाले माध्यमों के रूप में हुई थी। परंतु इनकी बढ़ती लोकप्रियता से ये स्वयं ही विभिन्न फिल्मों, वेबचित्रों, वेब सीरिज आदि के निर्माता बन गए।

ओटीटी प्लेटफार्म को विनियमित करने वाले कानून

भारत के लिए ये मनोरंजन के नए साधन हैं। अभी तक इनके लिए कोई नियम-कानून नहीं बनाए गए हैं। इनका नियंत्रण पहले इलैक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन था, जिसे अब सूचना-प्रसारण मंत्रालय को सौंप दिया गया है। इसका अर्थ होगा कि इन मंचों को सामग्री के प्रसारण से पूर्व मंत्रालय से अनुमति और प्रमाण पत्र लेना होगा।

अधिकाशं मंचों के पास ऐसी सामग्री है, जिसे प्रमाणन बोर्ड सेंसर करने को कह सकता है। इसलिए इन मंचों के लिए काफी समस्या उत्पन्न हो सकती है।

इन मंचों को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार सन् 2000 के आई टी कानून में संशोधन करने पर विचार कर रही है।

ऐसा नहीं है कि ओटीटी मनोरंजन भारतीय कानूनों के दायरे से बाहर है। शत्रुता, घृणा और बीमार इच्छाशक्ति को बढ़ावा देने वाली सामग्री जो जानबूझ कर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से दिखाई जाए, भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (ए) और 295 (ए) के तहत आती है। बाल पोनोग्राफी तथा आतंकवाद का विस्तार आदि सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत आते है।

इनको नियंत्रित करने की आवश्यकता क्यों ?

जनहित याचिका में ओटीटी के माध्यम से ‘सृजनात्मक स्वतंत्रता का शोषण’ की अनुमति का मुद्दा उठाया गया है। इससे क्रूरता, घिनौने दृश्य एवं अभद्र भाषा को बढ़ावा मिल सकता है। हमारे सामाजिक मूल्यों को सुरक्षित रखने की दृष्टि से नियंत्रण आवश्यक है।

निष्कर्ष –

सामाजिक रूप से पडने वाले प्रभावों को देखते हुए ओटीटी पर नियंत्रण को ठीक माना जा सकता है। ऐसा लगता है कि इसके माध्यम से सरकार फर्जी खबरों, अभद्र और घृणा फैलाने वाले भाषणों पर भी कड़ा शिकंजा कसने का प्रयत्न कर सकती है। फिलहाल, सरकार ने अभी इस पर नीति को स्पष्ट नहीं किया है। अतः इसके स्वरूप पर ठोस रूप से कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित इंद्रजीत हाजरा के लेख पर आधारित। 20 नवम्बर, 2020

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