भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी विफल क्यों हैं ?
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भारतीय प्रशासनिक सेवा से चुने हुए अधिकारियों का देश में महत्व और प्रतिष्ठा है। विडंबना है कि यह महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित समूह आज अभिजात्य स्वार्थी, यथास्थिति को बनाए रखने वाले ऐसे नौकरशाहों में परिवर्तित हो गया है, जो वास्तविकता के संपर्क से दूर, अपने विशेषाधिकारों और सामाजिक स्थिति में बढ़ोत्तरी करने में निरंतर लगा हुआ है। यह वर्ग दृढ़ता से खड़े होने की शक्ति खो चुका है।
स्वतंत्रता के तुरंत बाद एक गरीब, अनपढ़ समाज में लोकतंत्र को मजबूत करने के एक अभूतपूर्व प्रयोग की शुरूआत करने वाले देश में राष्ट्र निर्माण के विशाल कार्य के लिए आईएएस की स्थापना की गई थी। इस वर्ग के अधिकारियों ने इस प्रयास का नेतृत्व भी किया, और अपनी सेवा व योग्यता के लिए शानदार प्रतिष्ठा अर्जित की। यह बाद के दशकों में अयोग्यता, उदासीनता और भ्रष्टाचार में परिवर्तित होने लगी।
भारतीय प्रशासनिक सेवा की अस्वस्थता के कारण –
- भर्ती के लिए ली जाने वाली परीक्षा
- प्रवेश के बाद का प्रशिक्षण
- सेवाकालीन प्रशिक्षण
- आत्म-सुधार के सीमित अवसर
- उदासीन या एक सीमा तक कठोर करियर प्रबंधन तथा
- प्रोत्साहन और दंड की एक गहरी त्रुटिपूर्ण प्रणाली
इसे थोड़ा गहराई से समझा जाना चाहिए। जब हर किसी को समय के प्रवाह के साथ पदोन्नत किया जाता है, तो अधिकारियों पर प्रदर्शन करने और परिणाम देने का कोई दबाव नहीं होता है। ऐसी व्यवस्था में जहां स्मार्ट, चुस्त और उत्साही को शीर्ष पर पहुंचने का कोई आश्वासन नहीं दिया जाता है, आलसी, भ्रष्ट और अक्षम को बाहर नहीं निकाला जाता है, वहां अधिकारियों को अपने ज्ञान और कौशल को उन्नत करने के लिए कोई प्रेरणा नहीं होती है।
- राजनेताओं का तथाकथित दबाव
सच्चाई यह है कि कोई भी राजनीतिक व्यवस्था, चाहे वह कितनी भी घिनौनी क्यों न हो, एकजुट और अनम्य रूप से नैतिक व पेशेवर अखंडता के सामूहिक उच्च मानकों के लिए प्रतिबद्ध नौकरशाही को भ्रष्ट नहीं कर सकती है।
अगर विदेशों में इससे जुड़े उदाहरण देखें, तो हाल ही में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पर ‘पार्टी-गेट’ उल्लंघन के लिए जांच की जा रही है। ब्रिटेन की संसद के एक भी सदस्य ने जांच की सत्यता पर कोई संदेह नहीं जताया है। हमारे सिस्टम में ऐसा होना अकल्पनीय है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों को अपनी प्रतिभा और योग्यता के स्तर के अनुरूप सेवाकाल में खरा उतरने की जरूरत है। आईएएस की आत्मा में सुधार की चुनौती को स्वीकार कर, उन्हें अगली पीढ़ी को एक गरिमामय विरासत सौंपने का प्रयास करना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित डी.सुब्बाराव के लेख पर आधारित। 26 मार्च, 2022